भूगोल इकाई – 5 (क) बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. बिहार में धान की फसल के उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें ।
उत्तर- बिहार में धान की फसल के लिए उपयुक्त सभी भौगोलिक दशाएँ मौजूद है। यहाँ गंगा के उत्तर तथा दक्षिण दोनों भागों में पर्याप्त जलोढ़ मिट्टी उपलब्ध है। पानी के लिए मानसून की वर्षा है। वर्षा नहीं होने पर सिचाई के साथ विकसित किए गए है। वर्षा और सिचाई के बल पर ही यहाँ तीनों प्रकार के बात उपजता है। खरीफ, अगहनी तथा गरमा। तापमान भी धान की उपज के उपयुक्त रहता है। वैसे धान तो पूरे बिहार में उपजता है, लेकिन इसके मुख्य उत्पादक जिले हैं । (i) पश्चिम चम्पारण, (ii) रोहतास तथा (iii) औरंगाबाद। पश्चिमी चम्पारण पहले स्थान पर है तो रोहतास तथा औरंगाबाद
क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर है।
प्रश्न 2, बिहार में दलहन के उत्पादन एवं वितरण का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर- बिहार में सभी दलहनी फसले उपजाई जाती है। दलहनी फसलों में बिहार में अरहर तथा चना काफी पसन्द किए जाते हैं। अतः ये उपजाए भी अधिक जाते हैं। इनके बाद मसूर, खेसारी, मटर, मूँग, उड़द का स्थान है। ये सभी पूरे बिहार में उपजाए जाते हैं, लेकिन पहले स्थान पर पटना, दूसरे स्थान पर औरंगाबाद तथा तीसरी स्थान पर कैमूर जिले आते हैं। 2006-07 में रब्बी दलहनों की उपज 372 हजार मिट्रिक टन हुई वहीं खरीफ दलहनों की उपज 74 हजार मिट्रिक टन हुई। ये क्रमश: 519.6 हजार हेक्टेयर तथा 87.26 हजार हेक्टेयर भूमि पर बोए गए। ऊपर लिखित तीनों जिलों के अतिरिक्त लगभग सभी जिले कोई-न-कोई दलहनी फसल उगा लेते हैं।
प्रश्न 3. “कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है ।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- जैसा कि हम जानते हैं। बिहार एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 80% आबादी कृषि से जीविका प्राप्त करती है। यहाँ खाद्य, दलहन, तेलहन, व्यापारिक कृषि आदि सभी प्रकार की फसल होती हैं। व्यापारिक फसलों में गन्ना, जूट, तम्बाकु, फल, मिर्च, जीरा, धनिया और हल्दी जैसे मसाले भी उपजाए जाते हैं। फलों में आम, लीची और केला की प्रमुखता है। यत्र-तत्र अमरूद की खेती भी होती है। यदि कृषि न रहे तो बिहार के लोग भूखों मर जायें। अतः स्पष्ट है कि ‘कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।’
प्रश्न 4. नदी घाटी परियोजनाओं के मुख्य उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर- नदी घाटी परियोजनाओं के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित है। (i) पन बिजली का उत्पादन करना ।
(ii) बाढ़ की रोकथाम के साथ ही मनोरंजन स्थानों को बढ़ाना। (iii) सिंचाई की व्यवस्था करना तथा मछली पालन । (iv) नहरों से सिचाई तो होती ही है, ये यातायात का साधन भी हैं।
प्रश्न 5. बिहार में नहरों के विकास से सम्बंधित समस्याओं को लिखें।
उत्तर- बिहार में नहरों के विकास की समस्याएँ ऐसी हैं, जिनको चाहकर भी दूर नहीं किया जा सकता। केवल उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार के पश्चिमी जिले ही ऐसे है जहाँ की जमीन समतल और मुलायम है। शेष सभी जमीन ऊबड़-खाबड़, असमतल तथा पथरीली है, जहाँ नहर नहीं खोदी जा सकती। जहाँ नहर खोदी गई हैं, वहाँ की समस्या है, नहर से जल रीस कर दोनों ओर की जमीन जलमग्न होकर बेकार हो जाती है। एक समय और है। वह हैरों में गाद का जम जाना, जिसकी सफाई आवश्यक होती है। सफाई करने वाले ठेकेदार कुछ ऐसे ढंग अपनाते है, जिससे नहरों की सफाई के बदले उसको दुर्गति हो जाती है।
प्रश्न 6. बिहार के किस भाग में सिंचाई की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर- बिहार के उन भागों में सिंचाई की आवश्यकता होती है, जहाँ वर्षा कम होती है के मानसून की ऋतु चार महीने की होती है. किन्तु वर्षा कभी-कभी ही हो पाती है। कही कम होती है तो कहीं पर्याप्त और कहीं अधिक। अर्थात समान रूप से सर्वत्र नहीं होती में वर्षा नहीं होती या कम होती हैं, उन भागों में भी सिंचाई की आवश्यकता रती है। वले में सीचाई न की जाय तो फसल मारी जाएगी।
प्रश्न 7.बिहार में वनों के अभाव के चार कारण दें।
उत्तर- बिहार वनों के अभाव के चार कारण निम्नलिखित है।
(क)बिहार से झारखंड के अलग हो जाना। जो बच गए उनके संरक्षण पर ध्यान नहीं देना बढ़ी हुई
(ख)जनसंख्या के लिए अन्नोत्पादन के लिए जमीन हेतु वनों की कटाई ।
(ग) सड़क के चैड़ीकरण तथा रिहायसी मकानों को बनाने हेतु पेड़ों की कटाई।
प्रश्न 8. शुष्क पतझड़ वन की चर्चा कीजिए।
उत्तर- शुष्क पतझड़ का मौसम के आते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं और पूर्ण दिखाई देने लगते हैं। लेकिन तुरंत बसंत के आते ही नये पत्ते निकल आते हैं और पेड़ हरे-भरे दिखने लगते हैं। बिहार के पूर्वी मध्यवर्ती भाग तथा दक्षिण- पश्चिम माल में इसी प्रकार के यत मिलते हैं। खासकर कैमूर तथा रोहतास जिलों में शुक्ल का विस्तार है। ऐसे कम के मुख्य वृक्ष हैं : पलास, शीशम, नीम,=खैर, हरे, बहेडा, महुआ इत्यादि ।
प्रश्न 9. बिहार के ऐसे जिलों के नाम लिखिए जिन जिलों में वन-विस्तार एक प्रतिशत से भी कम है।
उत्तर- निनलिखित जिलो में वनों का विस्तार एक प्रतिशत से भी कम है : सिवान, सरमा, बक्सर, पटना, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, दरभंगा, मधुवनी, समस्तीपुर, बेगूसराय मधेपुरा, खगड़िया, नालन्दा इत्यादि
प्रश्न 10. बिहार में स्थित राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों की संख्या बताएँ और दो अभयारण्यों की चर्चा करें।
उत्तर- बिहार में केवल एक राष्ट्रीय उद्यान है, जो पटना में अवस्थित है तथा जिसका नाम गाँधी जैविक उद्यान है। बिहार में अभयारण्यों की संख्या 14 है। इनमें दो सिद्ध है। पहला है बाल्मीकि नगर बाघ अभयारण्य (पश्चिम चम्पारण) तथा दूसरा कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य (दरभंगा)। वाल्मीकि नगर बाघ अभयारण्य में बाघों की रक्षा की जाती है। उनके शिकार को पूरी तरह वर्जित माना गया है। इसके अलावा उस वन में हिरण, नीलगाय, बनया आदि भी है। इनके शिकार पर भी रोक है। कुशेश्वर स्थान वन्यजीव अभयारण्य है। वन्य जीवों के अलावे पक्षियों को बचाने के प्रयास भी चल रहे हैं। वहाँ एक झील है, जहाँ हिमालय के उत्तर से पक्षी तब आते है जब वहाँ भीषण ठंढ पड़ने लगता है। जब तक यहाँ का तापमान उनके अनुकूल रहता है, तब तक वे यहाँ रहते हैं और गर्मी का मौसम आते ही अपने मूल स्थान को लौट आते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. बिहार की कृषि की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर- बिहार की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि से अपना जीवन यापन करती है और 90 प्रतिशत के लगभग लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। इन बातों के बावजूद अन्य राज्यों की अपेक्षा प्रति हेक्टेयर उपज यहाँ काफी कम है। बिहार राज्य अनेक कृषि की समस्याओं से जूझता रहा है। वे समस्याएँ निम्नांकित हैं :
(i) ख़ुदा क्षरण की अधिकता तथा गुणवत्ता में कमी-वर्षा के कारण उपजाऊ ख़ुदा कट और बह जाती है। बाद में प्रतिवर्ष हजारों-हजार एकड़ उपजाऊ भूमि कट कर नदी के गर्भ में चली जाती है। रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग से मृदा अनुर्वर हो जाती है और अंततः उसका परती-सा उपयोग होने लगता है।
(ii) घटिया बीजों का उपयोग – अपनी गरीबी के कारण कुछ किसान उन्नत किस्म के बीज नहीं खरीद सकने के कारण गत वर्ष की उपज का बीज ही उपयोग करते हैं, जिससे प्रति एकड़ उपज कम हो जाती है।
(iii) आकार में खेतों का छोटा होता- पुश्त-दर- पुश्त खेतों का बँटवारा होते- होते खेत इतने छोटे आकार के हो जाते हैं कि उनमें ट्रैक्टर को कौन कहे, हल घुमाना भी कठिन होता है। इस कारण ऐसी कृषि में यंत्रों का उपयोग नहीं कर पाते। इससे उपज अपेक्षाकृत कम होती है।
(iv) किसानों में जड़ जमा चुकी रूढ़िवादित —बिहार के किसान भाग्य का अधिक सहारा लेते हैं और परिश्रम कम करते हैं। वे सोचते हैं कि ईश्वर जो चाहेगा, वही होगा
(v) सिंचाई की समस्या-राज्य के कुछ ही भाग में नहरों की व्यवस्था है । शेष- भाग के किसान मॉनसून के भरोसे कृषि करते हैं। मॉनसून इधर लगातार धोखा देता रहा है। कभी समय से पहले, कभी समय के बाद और कभी वह भी नादारद। इस कारण किसानों को सूखे का सामना करना पड़ता है।
(vi) बाढ़ – कभी-कभी बाद से तबाही मच जाती है। नेपाल में यदि अधिक वर्षा हुई, तो वह पानी बिहार में पहुँच कर तबाही मचा देता है। लगी-लगाई फसल दह या बह जाती है। मामला विदेश से जुड़ा होने के कारण बिहार सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती ।
प्रश्न 2. बिहार में कौन-कौन-सी फसलें लगाई जाती हैं? किसी एक फसल के उत्पादनों की व्याख्या करें ।
उत्तर- बिहार में चार तरह की फसले लगाई जाती हैं। वे हैं : (i) भदई (खरीफ), (ii) अगहनी (जायद), (iii) रबी तथा (iv) गरमा ।
उपर्युक्त फसलों में रब्बी फसल को प्रमुख माना जाता है। रबी फसल में गेहूँ, जौ, चना, मसूर, मूँग, उड़द, अरहर, गन्ना आदि की प्रमुखता है। इनमें अरहर और गन्ना तो भदई फसलो के साथ ही बोए जाते हैं, किन्तु काटे जाते हैं रबी फसलों के साथ। तात्पर्य कि अरहर और गन्ना लगभग एक वर्ष का समय लेते हैं। फिर भी इन सभी फसलों में गेहूँ को प्रमुख माना जाता है। कारण कि खाद्यान्न में गेहूँ का महत्व थोड़ा भी कम नहीं है। गेहूँ को अधिक पानी की भी आवश्यकता नहीं होती। दो से तीन बार हल्की सिंचाई भी गेहूँ के लिए पर्याप्त होता है। इस कारण जमीन का छोटा-से-छोटा टुकड़ा भी बेकार नहीं रह पाता। गेहूँ प्रायः अकेले नहीं बोया जाता। गेहूँ के साथ सरसों अवश्य छींट दिया जाता है। खेत के चारों ओर तीसी भी लगा दी जाती है।
गेहूँ कटने के पहले ही सरसों तैयार हो जाता है और उखाड़ लिया जाता है। तीसी गेहूँ के साथ काटी जाती है। गेहूँ की बोआई नवम्बर से दिसम्बर तक पूरी हो जाती है तथा मार्च से अप्रैल तक में कटाई समाप्त हो जाती है। 2006-07 में कुल 20.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूँ बोया गया और 43 लाख टन कुल उपज हुई। यदि पूरे बिहार स्तर पर देखा जाय तो गेहूँ की उपज में रोहतास जिला आगे रहा है। वहाँ 136 हजार हेक्टेयर भूमि में गेहूँ बोया गया और उपज 4 लाख मिट्रिकट हुई। ध्यान रहे कि यहाँ नहर की सुविधा प्राप्त है
प्रश्न 3. विहार की मुख्य नदी घाटी परियोजनाओं के नाम बताएँ एवं सोन अथवा कोसी परियोजना पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- बिहार की मुख्य नदी घाटी परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं : (i) सोन नदी घाटी परियोजना, (ii) गण्डक नदी घाटी परियोजना, (iii) कोसी नदी
घाटी परियोजना |
(i) सोन नदी घाटी परियोजना—सोन नदी घाटी परियोजना बिहार की सर्वाधिक पुरानी परियोजना है। यह बिहार की पहली परियोजना है। फिरंगियों की सरकार ने 1874 में सिंचाई सुविधा के विकास के लिए इसकी शुरुआत की थी। सोन नदी से टीहरी’ के पास दो नहरें निकाली गई। एक पूरब की ओर तथा दूसरी पश्चिम की ओर। दोनों नहरों की कुल लम्बाई 130 किलोमीटर थी। इन नहरों से कई शाखाएँ और उपशाखाएँ निकाली गईं, जिनसे गया, पटना, औरंगाबाद तथा रोहतास, भोजपुर, बक्सर आदि जिलों को सिंचाई की सुविधा प्राप्त हुई।
नहरों के बन जाने से इन क्षेत्रों में धान की इतनी उपज बढ़ गई कि इस क्षेत्र को ‘चावल का कटोरा’ कहा जाने लगा। इन नहरों से कुल 4.5 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है। सोन नदी घाटी परियोजना बहुद्देशीय है। फलतः इससे विद्युत उत्पादन के लिए शक्ति गृह’ की स्थापना की गई। पश्चिमी नहर पर 6.6 मेगावाट विद्युत् उत्पादन की क्षमता है। पूर्वी नहर से भी विद्युत उत्पादन का लाभ लिया गया। इस नहर पर बारुण के पास शक्ति गृह बनाया गया, जिसकी उत्पादन क्षमता 3.3 मेगावाट है। स्वतंत्र भारत में इस परियोजना के नवीकरण की योजना है। सोन नदी पर इन्द्रपुरी के पास एक ब बाँधवाने का विचार है, जिससे 450 मेगावाट पनबिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
(ii) कोसी नदी घाटी परियोजना- कोसी नदी घाटी परियोजना की बात फिरंगिय ने ही 1896 में सोची थी, किन्तु वे इसे कार्यरूप नहीं दे सके। कोसी नदी में इतना भयंकर बाढ़ आया करती थी कि “कोसी को बिहार का शोक’ कहा जाने लगा था। उस प बाँध बनाकर उसके जल को रोकना जरूरी था, ताकि बाढ़ से तबाही से बचते हुए बिजली। का उत्पादन भी किया जा सके। बाँध बनाने योग्य स्थान नेपाल के हनुमान नगर में था, अतः मामला विदेशी होने के कारण इसमें भारत सरकार का सहयोग भी आवश्यक था। 1955 ई. में भारत-नेपाल तथा बिहार के सम्मिलित सहयोग से हनुमान नगर में एक बड़ा बाँध बनाया गया। उद्देश्य बहुद्देशीय रखा गया ताकि बाढ़ से फसल तो बचे ही, वहाँ बिजली का भी उत्पादन हो सके। मछली पालन, नौकायन एवं पर्यावरण संतुलन के ख्याल से यह महत्ती योजना पूरी की गई।
योजना बड़ी थी अतः यह अनेक चरणों में पूरी हुई। पहले चरण में वह काम किया गया, जिससे कोसी अपनी धारा को प्रति वर्ष बदलना समाप्त करे। हनुमान नगर में बैराज का निर्माण, बाढ़ नियंत्रण के लिए दोनों ओर बाँध का निर्माण, पूर्वी एवं पश्चिमी कोसी नहर एवं उसकी शाखाओं का निर्माण को पूरा किया गया। नदी के दोनों तटों पर बने बाँध की लम्बाई 240 किलोमीटर है। पूर्वी नहर तथा इसकी सहायक नहरों द्वारा 14 लाख एकड़ खेत की सिंचाई का अनुमान रखा गया। इससे पूर्णिया, सहरसा, मधेपुरा, अररिया आदि जिलों को लाभ प्राप्त हुआ। पूर्वी नहर को और बढ़ाकर इसकी एक शाखा ‘ताजपुर नहर’ नाम से निकाली गई है। पश्चिमी नहर से भी कई उप नहरों का निर्माण किया गया है। इसका कुछ भाग नेपाल में पड़ता है। शेष भाग मधुबनी और दरभंगा में पड़ता है। कोसी बैराज 1963 में पूरा हो गया। दूसरा चरण विद्युत् उत्पादन से सम्बद्ध था।
पूर्वी नहर से बीस हजार मेगावाट विद्युत् उत्पादन वाला शक्ति गृह बनाना अभी निर्माणाधीन है। यह नहीं समझना चाहिए कि बाँध और बैराज से लाभ ही लाभ है। जब कभी अधिक जल के आने से पानी बाँध के ऊपर से बहने लगता है तो तबाही का दृश्य उपस्थित हो जाता है। 2008 में ऐसा हो भी चुका है। (सोन या कोसी, दोनों में से किसी एक को ही लिखें।)
प्रश्न 4. विहार में वन्य जीवों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर- बिहार में वन्य जीव संरक्षण की परम्परा बहुत पुरानी है। यहाँ कई ऐसे पर्व हैं, जो पेड़ों के नीचे ही सम्पन्न किये जाते हैं। अक्षय नवमी का पर्व आंवला के वृक्ष के नीचे पूर्ण किया जाता है। पीपल, बरगद, नीम, तुलसी आदि को पूज्य माना जाता है। बिहार में चींटी से लेकर साँप तक को भोजन देने का रिवाज है। अनेक ऐसे लोग हैं जो डिब्बा में सत्तू-चीनी रखे रहते हैं और जहाँ कहीं चीटियों का वास स्थान देखते हैं, वहाँ थोड़ा गिरा देते हैं। नागपंचमी की रात साँपों को दूध और धान का लावा दिया जाता है, भले ही वे खायँ या नहीं।
बिहार के बहुत ऐसे घर हैं जहाँ अपने भोजन में से पहले गाय और बाद में कुत्ता को खिलाना आवश्यक मानते हैं। यदि केवल वन्य जीवों की बात की जाय तो बिहार में वनों की कमी है, इसलिए वन जीव भी कम ही हैं। पश्चिम चम्पारण के उत्तरी भाग में घने वन हैं और वहाँ वन्य जीव भी हैं। बाल्मीकि नगर में ‘बाघ अभयारण्य’ बनाया गया है। बाघों को मारने की मनाही तो है ही, हिरण, चितल, सूअर, नीलगाय आदि को भी मारना वर्जित है। बिहार में केवल एक जैविक उद्यान है जो पटना में अवस्थित है और उसका नाम संजय गाँधी जैविक उद्यान’ है। इस उद्यान में वन्य जीव-जंतुओं के अलावा पेड़-पौधों का भी संरक्षण किया जाता है। बेगूसराय जिले में अवस्थित ‘काँवर झील’ तथा दरभंगा आते हैं। इन पक्षियों का शिकार या इन्हें फँसाने पर कड़ाई से रोक लगाई गई है।
कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. बिहार में कितने प्रकार की फसलें होती हैं। मौसमानुसार उनके लिखें ।
उत्तर- बिहार में चार प्रकार की फसलें होती हैं। उनके नाम हैं : (i) भदई (जायद), (ii) अगहनी (खरीफ), (iii) रबी तथा (iv) गरमा ।
प्रश्न 2. बिहार में उपजने वाले प्रमुख खाद्यान्नों के नाम लिखें।
उत्तर- बिहार में उपजने वाले प्रमुख खाद्यान्न निम्नलिखित हैं :नाम (i) धान, (ii) गेहूँ, (iii) मक्का, (iv) मडुआ (रागी), (v) बाजरा, (vi) ज्यार (vii) कोदो, (viii) सांवा, (ix) टंगुनी, (x) चीना, (xi) कुरथी इत्यादि ।
प्रश्न 3. बिहार में उपजने वाली दलहनी फसलों के नाम लिखें।
उत्तर- बिहार में निम्नलिखित दलहनी फसलें उपजाई जाती हैं : (i) अरहर, (ii) चना, (iii) मसूर, (iv) खेसारी, (v) मटर, (vi) केराव, (vii) बकल इत्यादि ।
प्रश्न 4. बिहार में उपजाई जाने वाली तेलहनी फसलों के नाम लिखें।
उत्तर- बिहार में उपजाई जाने वाली तेलहन फसले निम्नलिखित हैं : (i) सरसों, (ii) तोरी, (iii) राई, (iv) तीसी, (v) कुसुम (बरे), (vi) सूरजमुखी, (vii) कोयला (महुआ की फली), (viii) तिल, (ix) रेड़ी इत्यादि ।
प्रश्न 5. बिहार में व्यावसायिक फसलों के नाम लिखकर यह भी लिखें कि मुख्यतः किन-किन जिलों मे उपजाई जाती हैं ?
उत्तर- बिहार में व्यावसायिक फसलों के नाम तथा सम्बद्ध प्रमुख जिले निम्नलिखित हैं : (i) गन्ना — इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं : पश्चिमी चम्पारण, गोपाल गंज तथ पूर्वी चम्पारण । (ii) जूट——जूट के प्रमुख उत्पादक जिले हैं : पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, किशनगंज। (iii) तम्बाकू–तम्बाकू के उत्पादक जिले हैं : समस्तीपुर, वैशाली, दरभंगा, पटना।
प्रश्न 6. विहार में उपजने वाले प्रमुख फल, मसाले तथा सब्जियों के नाम लिखें ।
उत्तर- फल-बिहार में उपजने वाले फल हैं: आम, लीची, अमरुद, केला, पपीता, सिघाड़ा, मखाना इत्यादि हैं। मुजफ्फरपुर जिले की शाही लीची काफी प्रसिद्ध है। वैसे तो वैशाली जिले में भी लीची होती है। वैशाली जिला केला के लिए अधिक प्रसिद्ध है। मखाना मधुबनी तथा दरभंगा जिलों में होता है। सब्जियाँ—बिहार में हर प्रकार की सब्जियाँ उपजायी जाती हैं। नालन्दा जिला आलु के लिए प्रसिद्ध है, वैसे होता यह सर्वत्र उपजता है। भिडी, परवल, लौकी, विभिन्न प्रकार के साग, प्याज, आदि उपजाए जाते हैं। दियारा क्षेत्र में लत्तर वाली सभी सब्जियाँ खूब उपजती हैं। मसाले—मसालों में लाल मिर्च की प्रमुखता है। इसके अलावे हल्दी, अदरख, सौंफ, जीरा, लहसून, हरी मिर्च भी उपजाए जाते हैं।