Chapter 3 आपदा प्रबन्धन – भूकंप एवं सुनामी |
प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन :भूकंप एवं सुनामी
लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. भूकंप के केंद्र एवं अधिकेन्द्र के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भू–पटल के नीचे का वह स्थल, जहाँ भूकंपीय कंपन आरम्भ होता है, यो भूकंप केन्द्र अर्थात् भूकंप का केन्द्र कहते हैं। ठीक इसके विपरीत भू–पटल पर वे केन्द्र, जहाँ भूकंप के तरंग का सर्वप्रथम अनुभव किया जाता है, उसे भूकंप का अधिकेंद्र कहते हैं।
प्रश्न 2. भूकंपीय तरंगों से आप क्या समझते हैं ? प्रमुख भूकंपीय तरंगों के नाम लिखिए ।
उत्तर- जब पृथ्वी के अन्दर आंतरिक तरंगों के कारण भू–पटल कम्पन करने लगता है, तो वैसी स्थिति को भूकंप कहते हैं। प्रमुख भूकंपीय तरंगों के नाम हैं : प्रथमिक तरंग, द्वितीयक तरंग तथा दीर्घ तरंग । प्राथमिक तरंग को ‘P’ तरंग, द्वितीयक तरंग को ‘S’ तरंग तथा दीर्घ तरंग को ‘L’ तरंग भी कहते हैं।
प्रश्न 3. भूकंप और सुनामी के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर—जब पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों के कारण पृथ्वी का स्थलीय भाग कंपन करने लगता है, उसे भूकंप कहते हैं, ठीक इसी प्रकार उक्त प्रक्रिया से समुद्र में ऊँची लहरें उठने लगती हैं, उसे सुनामी कहते हैं। भूकंप से भूमि पर अवस्थित भवन आदि ढहने लगते हैं और अनेक लोग उसमें दब जाते हैं। लेकिन सुनामी की समुद्री लहरे समुद्र
तटीय भवनों को बहा ले जाती हैं, जिसके साथ सम्पत्ति और लोग भी बह जाते हैं।
प्रश्न 4. सुनामी से बचाव के कोई तीन उपाय बतावें ।
उत्तर– सुनामी से बचाव के प्रमुख तीन उपाय निम्नांकित हैं : (i) समुद्र में प्लेटफार्म बनाए जायँ, जैसा मुंबई हाई में बना है। (ii) तटबंध वहाँ-वहाँ बनाए जायँ जहाँ तट पर कोई नगर या बस्ती हो । (iii) समुद्र के किनारे मैंग्रोव झाड़ियों को विकसित किया जाय।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. भूकंप क्या है ? भारत को प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में विभाजित करते हुए सभी क्षेत्रों का संक्षिप्त विवरण दीजिए ।
उत्तर—पृथ्वी के आंतरिक हलचलों और प्रक्रियाओं से चट्टानें हिलने लगती हैं और जमीन काँपने लगती है। इसी को भूकंप कहा जाता है । भारत के भूकंप क्षेत्र – भारत को पाँच जोन या क्षेत्रों में बाँटा गया है : जोन 1, जोन 2, जोन 3, जोन 4 तथा जोन 5.
जोन 1- जोन । में दक्षिण के पठारी क्षेत्र आते हैं। इस जोन में भूकंप की आशंका लगभग नहीं के बराबर है।
जोन 2– में प्रायद्वीपीय भारत के तट के मैदानी क्षेत्र आते हैं। दोनों तटोंनके मैदानी क्षेत्रों में भूकंप की आशंका तो रहती है किन्तु उनकी तीव्रता न के बराबर होती है।
जोन 3 – जोन 3 में गंगा-सिंधु के मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के सीमित क्षेत्र हैं। यहाँ भूकंप का रूप विनाशकारी होता है। बिहार में 1934 का भूकंप विनाशकारी ही था ।
जोन 4 – जोन 4 में हिमालयीय शिवालिक क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, असम घाटी तथा पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह इसी भाग में हैं।
जोन 5 – जोन 5 सबसे अधिक खतरनाक जोन है। गुजरात का कच्छ क्षेत्र, जम्मू- कश्मीर, हिमालय प्रदेश, कुमाऊँ का पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम तथा दार्जिलिंग आदि इसी क्षेत्र में आते हैं।
प्रश्न 2. सुनामी से आप क्या समझते हैं? इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर—पृथ्वी के आंतरिक प्रक्रियाओं के चलते जब समुद्री तल की जमीन काँपने लगती है तो उसका प्रभाव समुद्री जल में लहरों के रूप में देखा जाता है। इसी को सुनामी कहा जाता है। सुनामी में सैकड़ों मीटर की ऊँचाई तक समुद्री लहरें उठती हैं। और तटीय क्षेत्र के भवनों के साथ सबकुछ को बहा ले जाती हैं। भूकंप तो कुछ छोड़ता भी है, सुनामी कुछ भी नहीं छोड़ती। सुनामी से बचने के उपाय- – सुनामी से पूर्णतः तो नहीं बचा जा सकता लेकिन उसके कुप्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। उसका उपाय है कि कंक्रीट का तटबंध बने और उसके दोनों ओर बोल्डरों को तार से बाँध कर ढेर लगा दिया जाय। तट पर।मैंग्रोव जैसी झाड़ियों को अधिकता से उगाया जाय।
इससे लहरों की गति कम हो जाएगी और तटबंध पर दबाव कम पड़ेगा। जहाँ तट पर बस्ती दूर हो वहाँ मैंग्रोव उपजा देना ही काफी होगा। सबसे बड़ी बात है कि तटवर्त्ती बस्ती या नगरों के लोगों को प्रशिक्षित किया जाय कि सुनामी आने पर अपने बचाव के लिए कौन-से तरीके अपनाए जायँ। लोगों को समझाया जाय कि सुनामी की सूचना मिलते ही स्थल खंड की ओर भागा जाय। जब समुद्र जल स्थिर हो जाय तब बचाव का काम शुरू किया जाय। बचाव कार्य सामूहिक रूप से किया जाय। घायलों को चिकित्सा सुविधा पहुँचाई जाय । प्रशिक्षित लोगों द्वारा स्वच्छ पेयजल पहुँचाने का प्रबंध हो। जिनके पास खाने को कुछ नहीं बचा हो उनको खाने का सामान दिया जाय। ऐसी स्थिति आने पर प्रायः असामाजिक तत्व लूटपाट जुट जाते हैं। उन्हें ऐसा करने से रोका जाय ।
प्रश्न 3. भूकंप एवं सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के उपायों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-भूकंप के विनाशकारी प्रभाव से बचाने के लिए प्रशासनिक तथा गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों—दोनों को लगना पड़ता है। इसके लिए प्रशासन को चाहिए कि आधुनिक मीडिया का उचित सहयोग ले। वे लागों को बताएँ कि अफवाहों पर ध्यान न दें। लोगों को मीडिया वाले यह भी बातावें। कि कहाँ पर किस प्रकार की व्यवस्था की गई, ताकि उसका अधिक-से-अधिक लोग लाभ उठा सकें। मलवे में दबे लोगों को निकालने।की व्यवस्था हो । राहत कार्यों के लिए विशेष दस्ते के गठन की आवश्यकता है। ऐसे तो केन्द्र और राज्य सरकारों ने आपदा प्रबंधन समितियों का गठन किया है, किन्तु मौके पर किसे, कहाँ, कौन से काम करने हैं—यह समझाया जाय ताकि वे अपने कर्तव्यों के प्रति सचेष्ट हो सकें ।
सुनामी – सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने का तरीका यह है कि मछुआरों को तट से दूर रहने की सलाह दी जाय। सुनामी आने के पूर्वानुमान की विधि विकसित की जाय | कम-से-कम एक घंटा पहले भी सूचना मिल जाय तो बहुतों को बचाया जा सकता है। खासकर मछुआरों को तो अगाह कर उन्हें समुद्र में जाने से रोका ही जान सकता है। पहले से सूचना देकर तटवर्त्ती बस्तियों और नगरों के लोगों को भी तट से दूर ऊँचाई पर भेजा जा सकेगा । सबके बावजूद यदि सुनामी के चपेट में लोग आ ही जायँ तो उन्हें यथाशीघ्र सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाय। उनके ठहरने और भोजन-पानी का प्रबंध किया जाय। इस काम में सरकारी संगठनों के साथ स्वयंसेवी संस्थाएँ दोनों मिलकर यदि काम करेंगे तो, लोगों को जल्दी-से-जल्दी सहायता पहुँचाई जा सकेगी। साथ ही चिकित्सा सुविधा की भी व्यवस्था की जाय ।