भूगोल इकाई – 3. निर्माण उद्योग

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. विनिर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं?  

उत्तर-कच्चे मालों द्वारा मानवोपयोगी वस्तुएँ बनाना विनिर्माण उद्योग कहलाता है। जैसे : कपास से कपड़ा, गन्ना से चीनी, लौह-खनिज से लोहा, बॉक्साइट से अल्यूमिनियम आदि वस्तुओं का निर्माण करना या बनाना। भारत में प्राचीन काल से ये या इनकी तरह मानवोपयोगी वस्तुओं का निर्माण होते रहा है। पहले जहाँ यह कुटीर उद्योग के रूप में होता था, अब वृहत्त उद्योग के रूप में हो रहा है। हालाँकि कुटीर उद्योग भी चालू हैं। जो देश विनिर्माण उद्योग में जितना आगे है वह उतना ही विकसित और सम्पन्न माना जाता

प्रश्न 2. सार्वजनिक और निजी उद्योग में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर- सार्वजनिक उद्योग उस उद्योग को कहते हैं, जिन्हें सरकार स्वयं चलाती है, अपनी पूँजी लगाती है और अपने कर्मचारी नियुक्त करती है। ऐसे उद्योग के संचालक मंडल में सरकारी अफसर रहते हैं। स्टील ऑथरिटी ऑफ इंडिया, भारत हैवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड सार्वजनिक उद्योग हैं। निजी उद्योग व्यक्ति विशेष द्वारा चलाए जाने वाले उद्योग हैं। इसमें व्यक्ति विशेष ही पूँजी लगता है, कर्मचारी नियुक्त करता है तथा घाटा-नफा के लिए स्वयं तैयार रहता है। जैसे ग्रामीण पुस्तक की दुकानें, प्रेस तथा, प्रकाशन उद्योग।

प्रश्न 3. उद्योगों के स्थानीयकरण के तीन कारकों को लिखिए ।

उत्तर- उद्योगों के स्थानीयकरण के तीन कारक निम्नलिखित हैं :  (i) कच्चे माल की उपलब्धि, (ii) बाजार तथा बैंकिंग की सुविधा, (iii) बन्दरगाह का निकट होना या रेल से सम्बद्धता ।

प्रश्न 4. कृषि आधारित उद्योग और खनिज आधारित उद्योग के अंतर को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-जिस उद्योग में कृषिगत उपज को कच्चा माल के रूप में उपयोग किया जाता है, उस उद्योग को कृषि आधारित उद्योग कहते हैं। जैसे सूती वस्त्र उद्योग, चीन उद्योग, जूट उद्योग आदि । जिस उद्योग में कच्चे माल के रूप में खानों से प्राप्त खनिजों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, उसे खनिज पर आधारित उद्योग कहते हैं। जैसे : लौह एवं स्टील उत्पादन उद्योग, अल्यूमिनियम उद्योग, अभ्रक उद्योग इत्यादि ।

प्रश्न 5. स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को उदाहरण सहित वर्गीकृत कीजिए ।

उत्तर- स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को चार वर्गों में वर्गीकृत करते हैं : (क) सार्वजनिक उद्योग—यह उद्योग सरकार चलाती है, जैसे : भेल, सेल । (ख) संयुक्त उद्योग-जिस उद्योग को निजी लोग तथा सरकार दोनों की सहभागिता होती है, उसे संयुक्त उद्योग कहते हैं। जैसे: वायल इण्डिया लि., ओ० एन० जी० सी० । (ग) निजी उद्योग-जिस उद्योग को व्यक्ति विशेष चलाते हैं, उन्हें निजी उद्योग कहते हैं। जैसे : टाटा आयरन स्टील कम्पनी, रेमण्ड इण्डिया । (घ) सहकारी उद्योग-जिस उद्योग को सहकारी समिति चलाती है, उसे सहकारी उद्योग कहते हैं। इसकी लाभ-हानि के जिम्मेदार समिति के सभी सदस्य होते हैं। उदाहरण के लिए गुजरात का अमूल उद्योग। गुजरात और महाराष्ट्र में तो अनेक चीनी मिल सहकारिता के आधार पर चलाए जाते हैं। बिहार का ‘बिस्कोमान’ एक सहकारी उपक्रम ही है।

दीर्घ उत्तरी प्रश्न:

प्रश्न 1. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है ? इसकी व्याख्या कीजिए |

उत्तर- प्रश्न में पूछे गए बिंदुओं का विवरण निम्नांकित है :
(¡) उदारीकरण- उदारीकरण शब्द आधुनिक उद्योगों में अपनाया जाता है। उद्योगों है। इसमें उत्पादक अर्थात कारखानेदारों को अफसरशाही से निजात मितली है। जो थोड़ा- पर सरकार का कम-से-कम प्रतिबंध रहे या प्रतिबंध न रहे, उसी को उदारीकरण कहते हैं। बहुत कानूनी दाव-पेंच है तो उसे बड़े उद्योग सम्भाल लेते हैं। पाँच-सात कर्मचारियों से लघु उद्योग चलाने वालों का भयादोहन तो होते ही रहता है।

(ii) निजीकरण- जिस उद्योग का स्वामित्व निजी हाथों में रहता है, उसे निजीकरण है। बाजार तैयार करता है, श्रमिक नियुक्त करता है तथा लाभ उठाने के साथ ही हानि। कहते है। ऐसे उद्योग में निजी व्यक्ति ही पूँजी लगाता है, उद्योग की देखभाल करता उठाने को भी तैयार रहता है। निजी उद्योगों को चलाने वाले सरकारी नियमों से बँधे रहते। है, जिन्हें इनको पालन करना पड़ता है।

(iii) वैश्वीकरण- जब देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया जाता है तब उस प्रक्रिया को ‘वैश्वीकरण’ कहते हैं। इस व्यवस्था के अन्तर्गत उद्योग पति बिना किसी रोक-टोक के पूँजी, तकनीक, व्यापारिक आदान-प्रदान करता है और लाभ उठाता है। भारत भी चाहता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ तारतम्य बन जाय । कारण कि वैश्वीकरण से जुड़ जाने पर अनेक आयात-निर्यात संबंधी सुविधाएँ मिलती हैं।

वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव- भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से वैश्वीकरण हो रहा है। परिणामतः अनेक क्षेत्रों में भारत के लिए उपलब्धियाँ उत्साह वर्द्धक रही हैं। भारत सरकार के पास विदेशी मुद्रा के भंडार में वृद्धि होती जा रही है। वर्ष 2007-08 में भारत के सुरक्षित कोश में 200 अरब डालर हो गया था। फिर विश्व मन्दी का कुछ प्रभाव भारत पर भी पड़ा है। लेकिन उतना नहीं जितना पश्चिमी देशों पर पड़ा है। चीन के बाद भारत ही एक ऐसा देश है, जिस पर मंदी का कम प्रभाव पड़ा है। रोजगार के अवसर कम हुए हैं। गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम प्रभावित हुआ है। अनाज का अपार भंडार रहने के बावजूद भारत में कुपोषण बढ़ा है। वैश्वीकरण से लघु उद्योग कुप्रभावित हुए हैं।

प्रश्न 2. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का विवरण दीजिए।आवश्यक है।

उत्तर- सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग एक ऐसा उद्योग है, जिसमें किसी कच्चे माल क आवश्यकता नहीं होती। यह मात्र ज्ञान पर आधारित उद्योग है। इस उद्योग के लिए आवश्यक है कि निरंतर शोध किया जाय और अपने ज्ञान को बढ़ाते रहा जाय ।कारण कि इस उद्योग के लिए विशिष्ट नए-नए ज्ञान को निरंतर बढ़ाते रहना अति भारतीयों के जीवन शैली को बदलकर रख दिया है। इसने इस क्षेत्र में एक सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) ने भारत के आर्थिक ढाँचे और क्रांति–सी ला दी है।

दूर-दराज शहरों में काम करने वालों को अपने परिवार जन से सम्पर्क रखना अब बहुत आसान हो गया है। सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत मोबाइल फोन से लेकर ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, पेजर, राडार, सेल्यूलर टेलीकाम, लेजर, जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष उपकरण, कम्प्यूटर तथा उसके स्पेयर यंत्र (हार्डवेयर) तथा प्रक्रिया सामान (साफ्टवेयर) सभी आ जाते हैं। इस कारण इसे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग भी कहते हैं। भारत में इनके प्रमुख उत्पादक केन्द्र बंगलुरु, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर तथा लखनऊ है। इन केन्द्रों के अलावा 20 साफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (Software Technology Park) भी हैं।

ये पार्क साफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो करते हैं। सेवा तथा उच्च आँकड़े संचार (High Data Communication) की सुविधा प्रदान सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का प्रमुख महत्व देश में बेरोजगारी पर अंकुश लगाना है। यह नवयुवकों को रोजगार मुहैया करा रहा है। महत्व की बात यह है कि इस उद्योग में 30% महिलाओं ने पैठ बनाई है। यह उद्योग विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक कारगर जरिया बनता जा रहा है। इसी कारण इससे जुड़ी अर्थव्यवस्था को ‘ज्ञान अर्थव्यवस्था’ भी कहा जा रहा है।

प्रश्न 3. भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर- एक समय था कि भारत में सूती वस्त्र उद्योग भारत के गाँव-गाँव में फैला था। लेकिन यह स्थिति तब थी जब यहाँ फिरंगियों का शासन स्थापित नहीं हुआ था। फिरंगियों का भारत में शासन स्थापित होने के समय ही इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति सफल हो चुकी थी।  ड्यंत्रपूर्वक ये भारत से कपास खरीदकर इंग्लैंड भेजने लगे और वहाँ का तैयार सूती वस्त्र यहाँ बेचने लगे। हाथ से बने कपड़े के मुकाबले मशीन ने बना कपड़ा देखने में सुन्दर तथा टिकाऊ होता था। अतः भारतीय लोग भी उधर आकर्षित. हो गए। परिणाम हुआ कि भारत का वह फलता-फूलता सूती वस्त्र उद्योग नष्ट हो गया ।

सूत कातने वाले और बुनकर बेकार होकर मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए। भारत में सबसे पहला सूती वस्त्र का आधुनिक कारखाना कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लास्टर में (1818 ई.) स्थापित हुआ, किन्तु चला नहीं और शीध बन्द हो गया। उसके बाद महाराष्ट्र तथा गुजरात में सूती वस्त्र के आधुनिक मिल लगाए गए। कारण था कि यहाँ कपास की अच्छी उपलब्धि थी। बातावरण आर्द्र था, जिसे महीन-से-महीन सूत टूटते नहीं थे। बाजार और बन्दरगाह भी निकट में ही थे। पूँजी की भी कमी नहीं थी। फलतः इस पूरे क्षेत्र में वस्त्र उद्योग चल निकला। एक प्रकार से यह उद्योग यहाँ केन्द्रित हो गया।

महाराष्ट्र में ही मुंबई, शोलापुर, पुणे, वर्धा, नागपुर, औरंगाबाद तथा जल गाँव सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्र बन गया है। गुजरात में अहमदाबाद, बड़ोदरा, सूरत, राजकोट, पोरबन्दर आदि में भी सूती वस्त्रोद्योग केन्द्रित है। महाराष्ट्र, गुजरात के अलावा पश्चिम बंगाल में भी सूती वस्त्र उद्योग केन्द्रित है। पश्चिम बंगाल में हावड़ा, मुर्शिदाबाद, हुगली और श्रीरामपुर में सूती वस्त्र उद्योग केन्द्रित है। इसके अलावे भारत के अन्य कई स्थानों पर भी सूती वस्त्र उद्योग फल-फूल रहा है। वह स्थान है। उत्तर प्रदेश में कानपुर, मुरादाबाद, आगरा और मोदीनगर। ग्वालियर, उज्जैन, इंदौर, देवास, जो मध्य प्रदेश में अवस्थित है, सूती वस्त्रोद्योग चल रहा है।हम जानते हैं कि यदि करघा पर बुने जाने वाले खादी वस्त्रों को भी मिला दिया जाय तो पूरे भार में सूती वस्त्र उद्योग वितरित है।

कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. किसी उद्योग को स्थापित करने के कारकों का संक्षेप में वर्णन करें।

उत्तर- किसी उद्योग को स्थापित करने में दो कारकों का महत्त्व है : (क) भौतिक कारक तथा (ख) मानवीय कारक । (क) भौतिक कारक- कच्चा माल, शक्ति के साधन, जल की सुलभता तथा अनुकूल जलवायु आदि भौतिक कारक हैं। (ख) मानवीय कारक श्रमिक, बाजार, परिवहन, पूँजी, बैंक तथा सरकारी नीतियाँ मानवीय कारक हैं।

प्रश्न 2. उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर- उद्योगों का वर्गीकरण अनेक आधारों पर होता है :
(i) श्रम के आधार – (क) बड़े पैमाने का उद्योग, (ख) मध्यम पैमाने का उद्योग तथा (ग) छोटे पैमाने का उद्योग ।
(ii) कच्चे माल के आधार- (क) भारी उद्योग तथा (ख) हल्के उद्योग ।

(iii) स्वामित्व के आधार – (क) सार्वजनिक उद्योग, (ख) निजी उद्योग, (ग) संयुक्त उद्योग तथा (घ) सहकारी उद्योग ।
(iv) कच्चे माल के आधार पर – (क) कृषिगत आधारित उद्योग, (ख) खनिजगत आधारित उद्योग, (ग) ज्ञान पर आधारित उद्योग ।

प्रश्न 3. कुछ कृषिगत आधारित उद्योगों के नामोल्लेख करें।

उत्तर- कृषिगत आधारित प्रमुख उद्योग निम्नलिखित हैं :.
(i) सूती वस्त्र उद्योग, (ii) जूट या पटसन उद्योग, (iii) ऊनी वस्त्र उद्योग, (iv) रेशमी वस्त्र उद्योग, (v) चीनी उद्योग, (vi) चाय उद्योग, (vii) कॉफी उद्योग, (viii) रबर उद्योग इत्यादि ।

प्रश्न 4. कुछ खनिजगत उद्योग के ऊल्लेख करें ।

उत्तर--खनिजगत प्रमुख उद्योग निम्नलिखित हैं :
(i) लोहा और इस्पात उद्योग, (ii) अल्युमिनियम उद्योग, (iii) ताँबा प्रगल उद्योग, (iv) रासायनिक उद्योग, (v) उर्वरक उद्योगं तथा (vi) सीमेंट उद्योग ।

प्रश्न 5. कुछ तैयार माल से निर्मित संरचनात्मक एवं उपकरण उद्योग के नाम लिखें।

उत्तर- तैयार माल से निर्मित कुछ संरचनात्मक एवं उपकरण उद्योग हैं : (i) रेल एवं रेलवे उद्योग, (ii) मोटर गाड़ी उद्योग, (iii) पोत निर्माण उद्योग, (iv) वायुयान उद्योग इत्यादि ।

प्रश्न 6. ज्ञान एवं श्रम-दक्षता पर आधारित उद्योगों के नाम लिखें।

उत्तर- ज्ञान एवं श्रम-दक्षता पर आधारित उद्योग निम्नलिखित हैं : (1) सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग, (ii) इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, (iii) तैयार वस्त्र एवं पोशाक उद्योग, (iv) सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग तथा (v) खिलौना उद्योग

प्रश्न 7. भारत में जूट उद्योग के वितरण का संक्षित वर्णन करें।

उत्तर-भारत में उद्योग मात्र पश्चिम बंगाल में केन्द्रित है, वह भी हुगली नदी जूट के दोनों तटों पर । हुगली नदी की 98 किलोमीटर की लम्बाई में दोनों तटों पर प्रायः 3 किलोमीटर की चौड़ाई में जूट के कारखाने अवस्थित हैं। यहाँ इस प्रकार एक ही स्थान पर उस उद्योग के केन्द्रित होने के कारण हैं कि यहाँ कच्चे माल की अच्छी उपलब्धि है। सस्ते जल परिवहन, जूट की सफाई के लिए हुगली नदी से जल की प्राप्ति, श्रमिको की उपलब्धि, बैंक, बीमा तथा बन्दरगाह की सुविधा ने यहाँ जूट उद्योग की वृद्धि में सहायता पहुँचाई है।

प्रश्न 8. चीनी उद्योग के वितरण पर प्रकाश डालें। यहाँ यह उद्योग क्यों स्थापित हुआ?

उत्तर- चीनी उद्योग खासकर उत्तर भारत तथा पश्चिम भारत में तो फैला ही हुआ है, कुछ कारखाने दक्षिण भारत में भी हैं। इसके कारखाने सर्वप्रथम बिहार में खुले, लेकिन बाद में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में भी खुल गए हैं। वर्ष 2008 में सम्पूर्ण भारत में कुल मिलाकर 615 चीनी के कारखाने कार्यरत थे। ऊपर बताए राज्यों में इस उद्योग के स्थापित होने का कारण है कि यहाँ गन्ने की उपज अच्छी होती है, जिनमें शर्करा की मात्रा अधिक रहती है।

प्रश्न 9. भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के इतिहास का वर्णन कीजिए ।

उत्तर-भारत में पहला लोहा-इस्पात कारखाना दक्षिण भारत में ‘पेर्टोनोवा’ नामक स्थान पर 1830 में स्थापित हुआ, किन्तु चल नहीं सका। उसके बाद 1864 में कुल्टी (पश्चिम बंगाल) नामक स्थान पर स्थापित हुआ। लेकिन नियमित ढंग से अधिक लोहा- इस्पात का उत्पादन करने वाला कारखाना ‘टाटा आयरन एवं स्टील कम्पनी’ सकची जमशेदपुर साबित हुआ। इसके बाद बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), भद्रावती (कर्नाटक) में कारखाने लगाए गए जो सफल भी रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोहा-इस्पात के अनेक कारखाने स्थापित हुए, लेकिन ये सभी विदेशी सहयोग से स्थापित हुए हैं। भिलाई (छत्तीसगढ़), राउरकेला (उड़ीसा), बोकारो (झारखंड) आदि स्थानों के लोहा-इस्पात कारखाने ऐसे ही कारखानें हैं।

प्रश्न 10. भारत में पहला सीमेंट कारखाना कव स्थापित हुआ। अभी वर्तमान में उसके वितरण पर प्रकाश डालें ।

उत्तर-भारत में पहला सीमेंट कारखाना 1904 में स्थापित हुआ। लेकिन इसकी उपयोगिता से अनजान लोग जल्दी इसे अपनाने को तैयार नहीं हुए। जब प्रचार बढ़ा तो अनेक कारखाने सामने आए। राँची के निकट ACC नाम से एक उच्च कोटि का सीमेंट कारखाना खुला जो आज भी चल रहा है। फिर सासाराम के निकट खलारी सीमेंट कारखाना खुला। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो इसका तांता लग गया। जैसे-जैसे खपत बढ़ता गया वैसे-वैसे कारखाने भी बढ़ते गए। आज सम्पूर्ण देश में कुल मिलाकर 1590 बड़े तथा 332 छोटे कारखाने कार्यरत हैं। अभी देश में 20 करोड़ टन प्रतिवर्ष सीमट का उत्पादन होता है। इसका देश में खपत तो होता ही है, दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी अच्छी माँग रहने के कारण इसका निर्यात भी किया जाता है।

प्रश्न 11. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का क्या योगदान है?

उत्तर-यद्यपि भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन देश में उद्योगों के विस्तार से कृषि पर भार कम हुआ है। जब कृषि में काम नहीं रहता तो लोग उद्योगों में काम कर नगद मुद्रा प्राप्त करते हैं। आज किसी देश की सम्पन्नता वहाँ कि विकसित उद्योगों से मारी जाती है। भारत में उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी नहीं है, फिर भी देश उद्योग में पिछड़ा ही कहा जाएगा। फिर भी सकल घरेलू उत्पाद में यहाँ उद्योगों का योगदान 17% है, जबकि पूर्वी एशियाई देश भारत से आगे हैं, यद्यपि वहाँ कच्चे माल की बेहद कमी है। वहाँ सकल घरेलू उत्पाद 25 से 35% तक है। भारत भी उद्योग में आगे बढ़ने के प्रयास में हैं। पिछले दशक में यहाँ 7% की वृद्धि हुई है और आशा है कि अगले दशक तक यह 12% हो जाएगी। यदि उद्योग में वृद्धि होती रहे और कृषि भी साथ दे दे तो देश को विकसित देश बनने से कोई रोक नहीं सकता।

प्रश्न 12. प्रदूषण के कारण और उसके कुप्रभावों का उल्लेख करें। यह कितने प्रकार का होता है ? वर्णन करें ।

उत्तर-उद्योगों के अवशिष्ट पदार्थों से प्रदूषण बढ़ता है। प्रदूषण का कुप्रभाव यह है कि वायु, जल तथा वातावरण सम्बंधी अन्य कारक प्रदूषित होकर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। प्रदूषण के कारण आज तो वैश्विक तापन में इतनी वृद्धि हो गई है कि मौसम में बदलाव तक देखे जा रहे हैं। प्रदूषण चार प्रकार के माने गए हैं : (i) वायु प्रदूषण, (ii) जल प्रदूषण, (iii) ध्वनिप्रदूषण तथा (iv) तापीय प्रदूषण ।

(i) वायु प्रदूषण– कारखानों से निकले धुआँ और विभिन्न गैसों के कारण वायु बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाले गैसों की वायु में अत्यधिक वृद्धि होने से देशवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हानिकारक गैसे शरीर में पहुँचकर मनुष्य को अनेक बीमारियों से ग्रसित कर रही हैं।

(ii) जल प्रदूषण – जल प्रदूषण के अनेक कारण हैं।प्रथमतः कारखानों के अवशिष्ट जल किसी-न-किसी नदी में ही गिराए जाते हैं। नगरों के जल-मल भी नदियों में ही गिराये जाते हैं। खेतों में प्रयुक्त रासायनिक उर्वरक, कीटनाशी आदि का जो उपयोग होता है, उसका कुछ अंश वर्षा जल के साथ बहकर जल स्रोतों को दूषित कर देते हैं, जिनके उपयोग से मनुष्य अनेक बीमारियों का शिकार होता है। शहर के कूड़ा-करकट भी जल स्रोतों को दूषित करते हैं ।

(iii) ध्वनि प्रदूषण — अवांछित शोर ध्वनि प्रदूषण का कारक है। उद्योगों के कारखानों, परिवहन के साधनों जैसे रेल, ट्रक, बस, वायुयान आदि ध्वनि प्रदूषित करने में आगे हैं। लाउड स्पीकरों के उपयोग से भी ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे मनुष्य अनेक गंभीर बीमारियों का शिकार बनता है। असहनीय शोर से बहरापन, हृदय रोग, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा तथा इनसे सम्बद्ध अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।

(iv) तापीय प्रदूषण – पृथ्वी वासी कुछ ऐसे रासायनों का उपयोग करने लगे हैं, जिससे आकाशीय ओजन परत क्षीण होने लगी है। इस कारण सूर्य की पारा बैंगनी किरण पृथ्वी पर अबाधगति से पहुँचने लगी हैं। पृथ्वी पर ताप में वृद्धि का यही कारण है। जिस रफ्तार से पृथ्वी पर ताप की वृद्धि हो रही है, एक समय ऐसा आएगा कि ध्रुवों और पहाड़ों पर के बर्फ पिघलकर समुद्र जल स्तर में इतनी वृद्धि कर देंगे कि पृथ्वी उसी डूब जाएगी। ऐसा होने में देर भले ही लगे, लेकिन चर्म रोग, कैंसर आदि बीमारियों में से तो लोग आक्रांत हो ही रहे हैं।

प्रश्न 13. प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय बताएँ ।

उत्तर- प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय हैं कि उद्योगों की स्थापना निर्धारित स्थानों पर ही हो। कारखानों से निकले धुएँ को छान कर ही वायु में छोड़ा जाय। अवशिष्ट जल की सफाई के बाद ही नदियों में छोड़ा जाय। चाहे वह कारखाने का हो या नगरों का। इसके लिए पृथक्कारी छन्ना, बैग फिल्टर तथा एक्रवर यंत्र अच्छा काम कर रहे हैं।

प्रश्न 14. उद्योगों से निकलने वाले अवशिष्ट जल को उपचारित करने के क्या उपाय हैं?

उत्तर- यह तो स्पष्ट है कि कारखानों के अवशिष्ट जल को उपचारित कर ही नदियों में छोड़ जाय। लेकिन यह जानना आवश्यक है कि उन्हें कैसे उपचारित किया जाय ।  कारखानों से निकले द्रवों को उपचारित करने के तीन स्तर हैं। प्रथम स्तर है यांत्रिक क्रिया द्वारा उपचार। द्वितीय स्तर है जैविक प्रक्रिया का उपयोग तथा तीसरा स्तर है जैविक, रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रियाओं का उपयोग। इसके बाद चक्रिय प्रक्रिया को अपनाया जाता है।

प्रश्न 15. भूमि-प्रदूषण को नियंत्रित करने की कितनी क्रियाएँ हैं?

उत्तर- भूमि प्रदूषण को नियंत्रित करने की निम्नलिखित क्रियाएँ हैं :
उत्तर- (i) विभिन्न स्थानों पर फैले कूड़े-कचरे को एकत्र करना ।

(ii) उन एकत्र कचरों का नीची भूमि को ऊँचा करने के लिए भराव में उपयोग हो ।

(iii) औद्योगिक अवशिष्टों में से मृदा की गुणवत्ता को कुप्रभावित करनेवाले तत्वों को परिशोधन किया जाय ।

(iv) अवशिष्टों का परिशोधन या उदासीकरण के अतिरिक्त इनका अन्य प्रबंधन मृदा प्रदूषण के नियंत्रण के लिए आवश्यक है।

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