बिहार : उद्योग एवं परिवहन
लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. बिहार में जूट उद्योग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-बिहार में जूट उत्पादन के तीन कारखाने थे। ये कटिहार, दरभंगा तथा पूर्णिया में थे। लेकिन अब यह केवल कटिहार में सिमट कर रह गया है। जूट उत्पादन को कच्चा माल सन या सनई होता है, जो पूर्णिया जिले में बहुतायत से उपजता है। जूट उद्योग के मार खा जाने का पहला कारण तो यह हुआ कि यह उद्योग विशेषतः बंगलादेश में चला गया और दूसरा कारण है प्लास्टिक का आविष्कार ।
प्रश्न 2. गंगा किनारे स्थित महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्रों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- गंगा किनारे अवस्थित महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र बरौनी, मुंगेर, बाढ़, मोकामा आदि में हैं। बरौनी में रासायनिक खाद, ताप बिजली तथा तेल सफाई का काम होता है। मुंगेर में सिगरेट तथा बंदूक के कारखाने हैं। बाद में दाल मिलें हैं। मोकामा में जूता का कारखाना है। गंगा किनारे और भी छोटे-मोटे कारखाने चलते हैं। भागलपुर का तसर उद्योग नामी है। बक्सर या इसके निकट चौसा में चावल कूटने का मिल है।
प्रश्न 3. औद्योगिक विकास हेतु विआडा के पहल को बताएँ ।
उत्तर- बिआडा, जिसका पूरा नाम बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार (Bihar Industrial Area Development Authority = BIARDA) है, के द्वारा औद्योगिक विकास के लिए साहसिक कदम उठाया गया है। इसके द्वारा 2006-07 में 172.45 करोड़ निवेश वाली 15 इकाइयों को जमीन दी गई। जबकि 2009-2010 में 4,218.62 करोड़ एल रुपये निवेशवाली 627 नई इकाईयों को जमीन दी गई है। पहले जहाँ काफी समय लगता था। अब आनन-फानन में सब काम हो जाता है। अब देखना है कि उद्योगपति क्या चमत्कार दिखाते है।
प्रश्न 4. नई औद्योगिक नीति के मुख्य विन्दुओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-नई औद्योगिक नीति 2006 के आने के बाद तथा आज की राज्य सरकार द्वारा नए निवेशों को प्रोत्साहन हेतु उठाए गए कदमों के बाद औद्योगिक क्षेत्र का काफी उत्साह बढ़ा है। राज्य में निवेश के कुल 245 प्रस्ताव आए हैं, जिनमें 57.84 हजार करोड़ रुपए का निवेश के लिए प्रस्ताव किया गया है। राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (SIPB) इनमें 115 प्रस्तावों को मंजूरी दे भी चुका है। इस प्रकार बिहार राज्य उद्योगों को बढ़ावा देने की ओर अग्रसर है।
प्रश्न 5. जमालपुर में किस चीज का वर्कशॉप है, और क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर- जमालपुर में रेलवे का वर्कशाप है। यह अपेक्षाकृत बहुत बड़ा है। यहाँ डीजल इंजन का काम होता है। इसके अलावे भी जमालपुर इसलिए प्रसिद्ध है कि एशिया का यह सबसे बड़ा रेलवे वर्कशॉप 1875 में स्थापित हुआ था, जिसमें दस हजार श्रमिक
कार्यरत थे। यह न केवल भारत में बल्कि एशिया का पहला वर्कशॉप था। यहाँ रेलगाडी सम्बंधित अनेक मरम्मती के काम होते थे।
प्रश्न 6. राजगीर के औद्योगिक विकास पर अपना विचार प्रकट कीजिए
उत्तर-राजगीर में यदि कोई उद्योग विकास पा सकता है तो वह उद्योग पर्यटन है। यहाँ भगवान बुद्ध और महावीर से सम्बद्ध अनेक स्मारक दर्शनीय हैं। गृद्धकूट अपर बुद्ध की एक भव्य मूर्ति है, जहाँ जाने के लिए विद्युतचालित रज्जू मार्ग की व्यवस्था है। वेणुनवन के पास ‘वीरायतन’ नामक संस्था ने महावीर के अनेक वस्तुओं को संजोकर रखा है। यहाँ गर्म जल का एक प्रसिद्ध कुंड है, जहाँ जाड़े में पर्यटकों की जमघट रहती हे। निकट में ही नालंदा है जो कभी विश्वविद्यालय के लिए विश्व में प्रसिद्ध था। इन सब कारणों से राजगीर में पर्यटन उद्योग के विकास की काफी सम्भावना है।
प्रश्न 7. मुंगेर में कौन-कौन से उद्योग विकसित हैं? वर्णन कीजिए ।
उत्तर- मुंगेर में जो भी उद्योग हैं, वे सब अंग्रेजों के जमाने में ही स्थापित किये गये थे। सिगरेट का कारखाना बहुत प्रसिद्ध है जो इम्पेरियल टोबैको कम्पनी ऑफ इण्डिया द्वारा संचालित है। अंग्रेजों के जमाने में ही यहाँ बन्दूक का कारखाना खुला था, जहाँ से देश भर में बदूकें भेजी जाती थीं। लेकिन आज की स्थिति यह है कि यह कारखाना अवनति की ओर अग्रसर है। सिगरेट कारखाने की स्थिति भी कोई अधिक उत्साह वर्द्धक नहीं है। कारण है श्रमिकों का असहयोग तथा श्रमिक नेताओं की विफलता ।
प्रश्न 8. उत्तरी बिहार की अपेक्षा दक्षिणी बिहार में सड़कों का विकास अधिक हुआ है, क्यों ?
उत्तर- दक्षिण बिहार में सड़कों पर विशेष ध्यान अशोक के समय से ही दिया जाता रहा है। अशोक द्वारा बनवाया गया ग्रैण्ड ट्रंक रोड, जिसकी मरम्मती शेरशाह ने करवाई थी, एक बहुत ही प्रसिद्ध सड़क है। सड़क तो उत्तर बिहार में भी हैं, किन्तु प्रति वर्ष बाढ़ आते रहने के कारण इनकी स्थिति अच्छी नहीं रहती। इसके विपरीत उत्तर बिहार में बाढ़ कम आती है या आती ही नहीं और जमीन पथरीली है। इस कारण सड़कें टिकाऊ होती हैं। सड़कों का विकास उत्तर और दक्षिण दोनों ओर बराबर हुआ है, लेकिन दक्षिण बिहार की सड़कें टिकाऊ और स्थायी होती हैं।
प्रश्न 9. बिहार में नदियों का परिवहन क्षेत्र में क्या योगदान है ?
उत्तर- बिहार में नदियों का परिहवन के क्षेत्र में प्राचीनकाल से ही योगदान रहा है। इसका प्रमाण इससे मिलता है कि बिहार के सभी बड़े औद्योगिक शहर गंगा तट पर ही अवस्थित हैं। पटना एक ऐसा स्थान है, जहँ अनेक नदियों का संगम है। उत्तर से घाघरा तथा गंडक और दक्षिण से पुनपुन तथा सोन नदियों का मिलन स्थल पटना ही है। इस कारण सर्वत्र के व्यापारी अपनी वस्तुओं के साथ यहाँ आते थे और खरीद-बिक्री करते थे। अब परिहवन में नदियों का महत्त्व कम हो चला है, लेकिन गंगा आज भी अपने परिवहन के महत्त्व को बनाए हुए है। कोलकाता से इलाहाबाद तक जहाज चलने लगे हैं।
प्रश्न 10. बिहार के प्रमुख हवाई अड्डों के नाम लिखिए और यह भी लिखिये कि वे कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर- बिहार की कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण यहाँ वायु मार्ग का उपयोग बहुत ही कम किया जाता है। हालाँकि क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से हवाई अड्डों की संख्या कुछ कम नहीं है। यहाँ सात हवाई अड्डे हैं, जिनमें दो अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के हैं। पटना में जयप्रकाश हवाई अड्डा तथा बोध गया—ये दोनों अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के हवाई अड्डे हैं। इनके अलावे मुजफ्फरपुर, जोगबनी, रक्सौल, भागलपुर, बिहटा में भी हवाई अड्डे अवस्थित हैं। ये अड्डे सभी स्थानीय महत्तव है
प्रश्न 12. बिहार के जल मार्ग पर अपना विचार प्रस्तुत करें।
उत्तर- चूँकि बिहार को समुद्र से कोई सम्पर्क नहीं है। फिर भी नदियों में बड़ी- बड़ी नावें चलाकर व्यापारिक वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाये जाते रहे हैं। अब चूँकि नदियों में अवसाद जमा हो जाने के कारण बहुत ही कम नावों का संचालन हो रहा है। ग्रीष्म ऋतु में जल की कमी के कारण लगभग नावों का संचालन बन्द हो जाता है। स्थानीय तौर पर आर-पार जाने के लिए नावों का संचालन सालों भर होते रहता है। अब गंगा तथा अन्य कई नदियों पर पुल बन चुके हैं और बहुत बन रहे हैं, अतः अब इसकी उपयोगिता भी समाप्त होती जा रही है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. बिहार के कृषि आधारित किसी एक उद्योग के विकास पर वितरण पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- बिहार में कृषि आधारित उद्योगों पर जब हम ध्यान देते हैं तो सबसे पहले चीनी उद्योग पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है। एक समय था कि चीनी उद्योग में बिहार का एक स्थान था। लेकिन मशीनों के पुरानी होते जाने और श्रमिकों तथा इनके नेताओं के दबाव को बरदाश्त नहीं कर पाने के कारण बहुत-से चीनी कारखाने बन्द हो गये। मशीनों के पुरानी पड़ने और उत्पादन के गिरते जाने और दूसरी ओर श्रमिकों का यह कहना कि हम इतने वर्षो से काम कर रहे हैं, इन दोनों दबावों को उद्योगपति झेल नहीं पाए और एक-एक कर सभी चीनी मिल बन्द होते गए।
पहले जहाँ बिहार में चीनी मिलों की संख्या 29 थी, वहीं 2006-07 के आर्थिक वर्ष में इनकी संख्या मात्र 9 रह गई। बिहार के लिए यह चिन्ता का विषय है। चीनी मिलों का वितरण अधिकतर सारण, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण में सिमट कर रह गया है। कारण कि ये क्षेत्र गन्ना उत्पादन में आगे रहे हैं। इनके अलावे कुछ मिलें समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर में हैं तो दक्षिण बिहार भी शून्य पर नहीं है। यहाँ भी बिहटा, विक्रमगंज, गुरारु आदि स्थानों पर चीनी मिल अवस्थित हैं । चीनी मिलों को बढ़ाने तथा उत्पादन में वृद्धि के लिए इधर आकर सरकार कुछ सचेष्ट हुई है। बन्द पड़ी मिलों को चलाने का प्रयास हो रहा है। सम्भव है कि इन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनयों के हाथ सौंप दिया जाय । यदि ये बन्द पड़ी मिलें चालू हो जाती हैं तो सम्भव है किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार सम्भव है।
प्रश्न 2. बिहार में वस्त्र उद्योग पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर- वस्त्र उद्योग बिहार का एक पुराना उद्योग है। पहले यहाँ कपास की अच्छी उपज होती थी, किन्तु अन्नोत्पादन को बढ़ाने के लिए कपास पर से कृषक ध्यान हटा चुके हैं। वरना यहाँ सूत भी काता जाता था। अब सूत कानपुर तथा अहमदाबाद से मँगाना पड़ता है। वैसे तो सूती वस्त्र के करघे बिहार के कोने-कोने में हैं, फिर भी डुमराँव, गया, मोकामा, मुंगेर, फुलवारी शरीफ, ओरमांझी तथा भालगपुर में अच्छी तरह सकेंद्रित भागलपुर तो सूती वस्त्र के अलावा सिल्क के कपड़े बनाने के लिए नामी है। यहाँ के तसर की माँग अपने देश में तो है ही, विदेश में भी है।
रेशमी वस्त्र उद्योग का विकास सबसे अधिक भागलपुर में हुआ है। बिहार में हस्त करघा तथा रेशमी वस्त्र निदेशालय की स्थापना हुई है। इसके प्रयास से न केवल भागलपुर, बल्कि मुजफ्फरपुर, गया तथा दरभंगा में भी रेशमी वस्त्र बनाने का काम चल रहा है। इस निदेशालय ने भभुआ में बनारसी साड़ी, नवादा तथा नालन्दा में रेशमी वस्त्र उत्पादन के लिए प्रोस्ताहन दिया है। बिहार में ऊनी का उत्पादन नहीं होता। होता भी है तो केवल कंबल और वस्त्र कालीन का। कम्बल और कालीन का उत्पादन औरंगाबाद जिले के ओबारा तथा दाउदनगर में होता है।
सूती वस्त्र उत्पादन के लिए सहकारिता क्षेत्र में एक बड़ा औद्योगिक प्रक्षेत्र विकसित ‘हुआ है। इसके अन्तर्गत हैण्डलूम और पावरलूम दोनों का विकास हुआ है। ये सब उद्योग पटना, गया, भागलपुर, बाँका, दरभंगा, अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, भभुआ नवादा, खगड़िया, नालन्दा, मधुबनी तथा सिवान जिले में सकेंद्रित है। यहाँ सहकारी समितियों की संख्या 9800 तथा बुनकरों की संख्या 1,32,294 है। इनमें कुछ सरकारी क्षेत्र में भी हैं।
प्रश्न 3. बिहार के प्रमुख सड़क मार्गों के विस्तार एवं विकास पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- बिहार का एक प्रमुख सड़क ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ है, जिसके निर्माता के रूप में शेरशाह का नाम लिया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बिहार में सड़कों की लम्बाई मात्र 2,104 किमी थी । अब यह बढ़कर 81,680 किमी हो चुकी है। इसके बाद कुछ सड़के निर्माणाधीन भी हैं । बिहार में सड़कों को पाँच वर्गों में रखा गया है। वे हैं: (i) राष्ट्रीय उच्च पथ, (ii) राज्य उच्च पथ, (iii) मुख्य जिला सड़कें, (iv) अन्य जिला सड़कें तथा (v) ग्रामीण सड़के। ग्रामीण सड़कों की लम्बाई तथा प्रतिशतता दोनों अधिक है। राष्ट्रीय उच्च मार्ग राज्यों को राज्यों से जोड़ता है। ग्रैंड ट्रंक सड़क तथा पूरब-पश्चिम गलियारा इसमें प्रमुखता रखते हैं। बिहार में राष्ट्रीय उच्च मार्ग की लम्बाई 3,734.00 किमी है।
ग्रैंड ट्रंक रोड बिहार बंगाल से चलकर झारखंड को पार करती बिहार में प्रवेश करती है और उत्तर प्रदेश की सीमा तक जाती है। दूसरी सड़क पूरब पश्चिम गलियारा का भाग है, जो उत्तर प्रदेश से बिहार में जलालपुर के पास प्रवेश करती है और गोपालगंज, पीपरा कोठी, मुजफ्फरपुर, बरौनी, बेगूसराय, खगड़िया, कटियार, पूर्णिया होते हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर जाती है। इनके अलावे आरा-बक्सर (उच्च पथ संख्या 84), छपरा-सिवार-गोपालगंज (उच्च पथ संख्या 85), गया-मोकामा-फरक्का (उच्च मार्ग संख्या 80), गया-राजगीर-बिहारशरीफ-बरबीघा- सरमेरा-मोकामा (उच्च पथ संख्या (82) अपना अलग महत्त्व रखते हैं। बिहार में सबसे लम्बी सड़क उच्च पथ संख्या 31 है, जो रजौली घाटी से चलकर बख्तियारपुर होते हुए बरौनी तक जाती है।
इनके अलावे भी अनेक सड़के हैं, जो गाँवों को जिलो से जोड़ती हैं। ग्रामीण पहुँच पथ की स्थिति भी अब सुधर चुकी है। गाँवों की गलियों तक को पक्का कर दिया गया है। नोट : ‘अँड ट्रंक रोड’ के निर्माता के रूप में शेरशाह का नाम लिया जाता है।
प्रश्न 4. बिहार के रेल अथवा जलमार्ग के सम्बंध में विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर- बिहार में रेलों का विस्तार अंग्रेजों ने अपनी प्रशासनिक पकड़ तथा उद्योगों के विकास के लिए किया था। सर्वप्रथम 1860 में गंगा के किनारे-किनारे कोलकाता से इलाहाबाद होते हुए दिल्ली तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने रेल का विस्तार किया। बाद में उत्तर बिहार में रैली का जाल बिछा दिया गया। सिलीगुड़ी से कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, हाजीपुर, सोनपुर, छपरा, सिवान होते हुए उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर आगे तक रेल बढ़ा दी गई। चीनी उद्योग को ध्यान में रखकर छपरा से सिवान तक एक लूप लाइन बनाई गई, जिसके प्रायः सभी स्टेशनों पर चीनी के मिल थे।
मेनलाइन में भी शीतलपुर तथा पचरुखी में चीनी मिल थे। फिर मुजफ्फरपुर में तुर्क वलिया, मोतिहारी, बेतिया, सुगौली, नरकटियागंज होते हुए गंडक नदी पर छितौनी घाट में पुल बना कर गोरखपुर तक रेल पहुँचाई गई। इस लाइन में भी चीनी मिलों की भरमार थी और अभी भी है। फिर दरभंगा, जयनगर, सीतामढ़ी, रक्सौल, सुगौली होते हुए नरकटिया गंज को जोड़ा गया। इस प्रकार नरकटियागंज एक प्रसिद्ध रेलवे जंक्शन बन गया। नरकटियागंज से ठोरी तक एक ब्रांच लाइन चलाई गई जिसका उद्देश्य रेलों के नीचे बिछाने हेतु एल बोल्डर की आपूर्ति करनी थी। सिवान-छपरा के बीच में दुरौंधा से महाराजगंज तक एक ब्रांच लाइन केवल महाराजगंज चीनी मिल के लाभ के लिए चालू की गई। गया, धनबाद दक्षिण बिहार में मोगलसराय से दो रेल रूट हैं।