लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. हैश्यूर विधि तथा पर्वतीय छाया करण विधि में अंतर बताइए।
उत्तर-हैश्यर विधि में उच्चावच निरूपण के लिए मानचित्र में छोटी महीन एवं टूटी हुई रेखाएँ उपयोग की जाती हैं। ये रेखाएँ ढाल की दिशा में खींची जाती हैं। रेखाओ को अधिक तीव्र ढाल वाले भागों के समीप मोटा और गहरा कर दिया जाता है। जहाँ पर ढाल मंद रहती है वहाँ पर रेखाएँ पतली और दूर-दूर रखी जाती हैं। समतल क्षेत्र खाली रहता है। पर्वतीय छाया करण विधि में उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर पश्चिम उत्तर कोने पर ऊपर से सूर्य का प्रकाश पड़ने की कल्पना कर छाया में पड़ने वाले भाग को ढाल समझकर उसे गाढ़े रंग से भर देते हैं और कम ढाल वाले हिस्से को प्लेन छोड़ देते हैं, क्योंकि वहाँ प्रकाश पड़ता है। प्रकाश वाले भाग को उजला माना जाता है।
प्रश्न 2. तल चिह्न और स्थानिक ऊँचाई क्या है ?
उत्तर- तल चिह्न उसे कहते हैं, जिस चिह्न को समुद्र तल से नापे गए भवनों, पुलों, खंभों या पत्थरों जैसे स्थाई वस्तुओं पर लगाते हैं। इससे समुद्र की सतह से उस स्थान की ऊँचाई का ज्ञान होता है। तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कहते हैं। इसे बिन्दुओं की सहायता से बनाते हैं और ऊँचाई को अंकों की सहायता लेकर संख्यात्मक रूप से व्यक्त करते हैं। ध्यान रहे कि ऊँचाई से तात्पर्य समुद्र की सतह से ऊँचाई होता है।
प्रश्न 3. सम्मोच्च रेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- समुद्र की सतह से विभिन्न ऊँचाईयों को दर्शान के लिए छोटे-बड़े घेरा बनाते हुए जो रेखाएँ खींची जाती हैं, उन्हें सम्मोच्च रेखा कहते हैं। रेखाएँ खींचने के पहले सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है ताकि ऊँचाई सही-सही स्पष्ट हो सके। रेखाओं से सटे ऊँचाई का मान अंकित कर दिया जाय। मानचित्र में इसे अंकों से न दर्शा कर बादामी रंग से दर्शाते हैं। रंग को गाढ़ा और हल्का कर ढाल और समतल भूमि को दर्शाया जाता है।
प्रश्न 4. स्तर रंजन क्या है ?
उत्तर- मानचित्रों पर वन, कृषि भूमि, समुद्र जल आदि को दिखाने के लिए विभिन्न रंगों का उपयोग किया जाता है। रंगने की इसी क्रिया को स्तर रंजन कहा जाता है। विभिन्न आभाओं द्वारा उच्चावच प्रदर्शन का एक मानक निश्चित है। उस मानक के अनुसार ही’रंजन’ क्रिया का उपयोग किया जाता है। आपने एटलस में देखा होगा कि समुद्र को नीले रंग से, मैदान को हरा रंग से तथा पहाड़ पहाड़ी को हल्का बादामी या हल्का कत्थई तथा बर्फ से ढँके क्षेत्र को उजला रूप में दर्शाया जाता है।
प्रश्न 5. सम्मोचय रेखाओं द्वारा शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर- शंक्वाकार का अर्थ है शंकु के आकार का, जिस जमीन का आकार चौड़ा हो और ऊपर क्रमशः पतला होता गया हो उसे पहाड़ी कहते हैं। ऐसी पहाड़ी का प्रदर्शन करने के लिए सबसे नीचे अर्थात जमीन पर बड़ा गोलाकार घेरा बनाया जाता है और ऊपर क्रमशः घेरा छोटा होता जाता है जो चोटी पर पहुँच कर शून्य के आकार का हो जाता है। उदाहरण में ज्वालामुखी पहाड़ को रखा जा सकता है, जिसका क्रेटर चिलम के नीचले भाग जैसा होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. उच्चावच प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- उच्चावच प्रदर्शन अर्थात भू-आकृतियों के निरूपण की विधियाँ तो अनेक हैं, लेकिन उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं, जिनका भूगोल के अध्ययन में सदैव आवश्यकता पड़ती है। वे निम्नलिखित हैं : (i) पहाड़, (ii) पठार, (iii) ‘V’ आकार की घाटी, (iv) जलप्रपात, (v) झील इत्यादि ।
(i) पहाड़-भूमि पर कहीं-कहीं काफी ऊपर उठा हुआ भाग दिखाई देता है। इसी को पहाड़ कहते हैं। अतः पहाड़ जैसी आकृति का प्रदर्शन भूमि पर ही किया जाता है। भूमि पर इसका आधार काफी चौड़ा होता है और ऊपर क्रमशः पतला होता जाता इसकी आकृति को शंकुनुमा भी कह सकते हैं। पहाड़ दर्शाने वाली सम्मोच्च रेखाओं को लगभग वृत्त के आकार का बनाया जाता है। नीचे वाले वृत्त का घेरा काफी चौड़ा और क्रमशः ऊपर वाले वृत्त का घेरा छोटा होता जाता है, जो चोटी पर पहुँचकर शून्य के आकार का हो जाता है।
(ii) पठार- पठार भी भूमि पर ही पाए जाते हैं जिनका आधार और ऊपरी भाग दोनों ही चौड़ा होते हैं। ऊपर समतल होते हुए भी धरान काफी ऊँचा-नीचा, ऊबड़-खाबड़ होता है। इसके प्रदर्शन के लिए समोच्च रेखाओं को लगभग लम्बा बनाया जाता है। सभी समोच्च रेखाएँ लम्बे आकार की खींची जाती हैं। सभी रेखाएँ बन्द रहती हैं। इनके बीच वाली रेखा भी काफी चौड़ी रहती है।