लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions ) :
प्रश्न 1. बिहार में हुए ‘छात्र आन्दोलन’ के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर – बिहार में हुए छात्र आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :
(i) 1971 में कांग्रेस का दिया गरीबी हटाओ का नारा झूठा साबित हुआ ।
(ii) बंगलादेश का निर्माण कराने तथा वहाँ से आए शरणार्थियों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई ।
(iii) बंगलादेश की स्थापना से कुढ़कर अमेरिका ने सहायता पर पाबंदी लगा दी ।
(iv) 1972-73 में मॉनसून द्वारा दिया गया धोखा ।
प्रश्न 2. ‘चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर- चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य था कृषि उपकरण बनाने हेतु कुछ अंगू के वृक्षों की प्राप्ति की प्रार्थना पर सरकार द्वारा ध्यान नहीं देना, उल्टे उसे व्यावसायिक कार्य हेतु निलाम कर देना। इस कारण किसानों ने आन्दोलन शुरू कर दिया। वे वृक्षों से चिपक जाते थे, उसे काटने नहीं देते थे। वे वृक्षों से चिपक जाते थे इस कारण इसे ‘चिपको आन्दोलन’ कहा गया। आन्दोलन का आरंभ उत्तराखंड के कुछ गाँवों से हुआ था जो बाद में पूरे राज्य में फैल गया और किसी भी पेड़ को काटने से रोका जाने लगा ।
प्रश्न 3. स्वतंत्र राजनीतिक संगठन कौन होता है?
उत्तर- स्वतंत्र राजनीतिक संगठन उसे कहते हैं, जो किसी अन्य देश के दबाव या निर्देशन में नहीं चलता है। वह अपना अस्तित्व स्वतंत्र बनाए रखता है। किसी अन्य दल से गठबंधन नहीं करता। अकेले चुनाव लड़ता है और बहुमत मिलने पर सरकार गठित करता है। चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद शासन की लालच में वह गठबंधन नहीं करता। वह सदैव अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखता है।
प्रश्न 4. भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगें क्या थीं?
उत्तर- भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ के खरीद मूल्य में वृद्धि करने, कृषि से सम्बद्ध उत्पादों के अंतरराज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को खत्म करने,समुचित दर पर गारंटी युक्त बिजली की आपूर्ति करने, किसानों के बकाए कर्ज की माफी तथा किसानों के लिए पेंशन योजना का प्रावधान करने की माँग की। भारतीय किसान यूनियन की इन माँगों से प्रभावित होकर देश के अन्य किसान भी ऐसी ही माँग उठाने लगे। यूनियन ने अपनी माँगों को बनवाने के लिए अनेक प्रकार के दबाव बनाना आरम्भ कर दिया ।
प्रश्न 5. सूचना के अधिकार आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर- सूचना के अधिकार आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित थे :
(i) पंचायत के स्तावेजों की अधिकारिक प्रतिलिपि दी जाय।
(ii) सूचना के अधिकार को कानूनी मान्यता मिले।
(iii) ‘सूचना की स्वतंत्रता’ नाम से एक विधेयक पारित किया जाय ।
(iv) माँगी गई सूचना में कोई हिला-हुज्जत नहीं किया जाय ।
प्रश्न 6. राजनीतिक दल की परिभाषा दें ।
उत्तर- साधारणतः राजनीतिक दल का आशय ऐसे व्यक्तियों के उस समूह जो राजनीतिक हितों की पूर्ति के उद्देश्य से संगठित किये जाते हैं। लेकिन इस दल का के माध्यम से ही ऐसे संघ उद्देश्य केवल राजनीतिक कार्यकलापों तक ही सीमित होना चाहिए। संक्षेप में कहेंगे कि हो जाता है। राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गठित दल को राजनीतिक दल कहते हैं। इन दलो है। परिणाम का उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना या सत्ताधारी दल को मनमानी करने से रोकना होता | द्वारा होता
प्रश्न 7. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि राजनीतिक दल जनता एवं जनसंघर्ष मे सरकार के बीच कड़ी का काम करता है?
उत्तर- राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थ बनकर एक की बात समूह संग दूसरे तक पहुँचाते हैं। जनता की इच्छा-आकांक्षाओं की जानकारी सरकार को बताते हैं और सराकर के निर्णयों की जनकारी जनता को बताते हैं। ये काम वे संसद या आन्दोलन विधायिकाओं में प्रश्न पूछकर या प्रश्न का उत्तर देकर तथा गाँवों में सभा का आयोजन उत्तर कर भाषण के जरिये करते हैं। इसलिए कहा गया है कि राजनीतिक दल जनता और उसमें और सरकार के बीच कड़ी का काम करता है।
प्रश्न 8. दलबदल कानून क्या है ?
उत्तर- किसी सांसद या विधायक द्वारा अपने दल को त्याग कर दूसरे दल की सदस्यता ग्रहण करना दलबदल कहलाता है। ऐसी स्थिति में सदैव सरकार के स्थायित्व पर आशंका बनी रहती थी। इससे ऊब कर दलबदल कानून बनाना पड़ा और लागू करना पड़ा। अब दल के सांसदों या विधायकों की संख्या के एक खास प्रतिशत से कम सांसद था विधायक दल बदलते हैं तो उनकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। यह कानून जब से लागू हुआ है तब से लोकसभा या विधानसभाओं की स्थिरता निश्चित हो गई है।
प्रश्न 9. राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं?
उत्तर- साधारणतः यही समझा जाता है कि जिस दल की पहुँच पूरे देश में होती है, उसे राष्ट्रीय दल कहते हैं। लेकिन चुनाव आयोग की दृष्टि में यह मान्यता सही नहीं साथ है। चुनाव आयोग की कुछ मान्यताएँ हैं, जिन्हें पूरी करने वाला दल ही राष्ट्रीय दल कहलाता है। जैसे : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राजद आदि राष्ट्रीय दल हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions ) :
प्रश्न 1. ‘जनसंघर्ष से भी लोकतंत्र मजबूत होता है ।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें ।
उत्तर- विश्व में जहाँ भी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है, वहाँ के लोगों को संघर्ष करना पड़ा है। सर्वप्रथम ब्रिटेन में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई, लेकिन इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। फ्रांस में लगातार सदियों तक संघर्ष चला तब वहाँ लोकतंत्र न केवल स्थापित हुआ बल्कि स्थायी भी हुआ। जब सत्ताधारियों और सत्ता में भागीदारी चाहने वालों के बीच संघर्ष चलता है तब यह देश में लोकतंत्र का विकास हो रहा होता है। लोकतांत्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबन्दी के सहारे संभव है।
भले ही ऐसे संघर्ष का समाधान कभी-कभी मौजूदा संस्थाओं, जैसे: संसद या न्यायपालिका के माध्यम से हो गया, लेकिन जब सत्ता में भागीदारी चाहनेवालों के बीच विवाद गहरा हो जाता है तथा संसद एवं न्यायपालिका जैसी संस्थाएँ स्वयं विवाद का भाग बन जाती है। परिणाम होता है कि संघर्ष का समाधान इनके जो अधिकार के बाहर अर्थात जनता द्वारा होता है। ऐसे जन संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का आधार राजनीतिक संगठन होते हैं। जनसंघर्ष में जनता की भागीदारी भले ही स्वतःस्फूर्त हो, लेकिन सार्वजनिक भागीदारी संगठित राजनीति के द्वारा ही संभव है। राजनीतिक दल, दबाव समूह और आन्दोलनकारी समूह संगठित राजनीति के सकारात्मक माध्यम हैं ।
प्रश्न 2. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि बिहार में शुरू हुआ ‘छात्र आन्दोलन’ का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया ।
उत्तर- 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ । इस कारण उसमें और उसके नेताओं में गरुर का भाव प्रवेश कर गया। जैसा कि सदा से होता आया था। चुनाव के बाद महँगाई अपने चरम पर पहुँच गई। प्रधानमंत्री द्वारा गैर-कानूनी ढंग से लेवी की वसूली शुरू हुई। खास कर छात्रों के उपयोग में आने वाला कागज का मूल्य बेतहाशा बढ़ गया। कारण कि कागज के मिल मालिकों से अगाध धन बसूला गया। कागज के मिल मालिकों ने वह धन अपने वितरकों से लिया वितरक ग्राहकों पर दबाव बनाने लगे कि बिल के मूल्य कि अतिरिक्त 30% आपको अलग से देना होगा।
नतीजा हुआ कि कागज की काला बाजारी चरम पर पहुँच गई। इसके साथ ही अन्य सामान भी महंगे होने लगे । जनता में त्राहिमाम मच गया। बिहार में महँगाई का जोर कुछ अधिक था। इस कारण यहाँ के छात्रों ने संगठित होकर आन्दोलन छेड़ दिया। छात्रों के अनुरो पर जयप्रकाश नारायण ने आन्दोलन की अगुआई स्वीकार ली । आन्दोलन तेज से तेजतर होता गया। सरकार को इमरजेंसी लगानी पड़ी। इससे आन्दोनल देश भर में फैल गया। देश के सभी नेता जेल में ठूंस दिए गए। चर्चा थी कि जेल में जयप्रकाश नारायण के साथ अमानवीय अत्याचार किया गया।
सरकारी कर्मचारी कुछ ज्यादतियाँ भी करने लगे ।डेढ़ वर्ष, अपातकाल के बीतते ही जनवरी 1977 में निर्वाचन की घोषण की गई । घोषण होते ही सभी नेता रिहा कर दिए गए। चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस पार्टी की बुरी तरह हाई हुई। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार गठित हुई। जितने दिनों तक मोरारजी की सरकार रही, महँगाई काबू में रही ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वक्तव्यों को पढ़ें और अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें :
(क) क्षेत्रीय भावना लोकतंत्र को मजबूत करती है।
उत्तर- निश्चय ही क्षेत्रीय भावना लोकतंत्र को मजबूत करती है। छोटे-छोटे क्षेत्र से ही राज्य बनता है और राज्य से देश अस्तित्व में आता है। अतः क्षेत्रीय भावना का होना गलत नहीं है। लेकिन यह राष्ट्रीय भावना के अनुरूप और संविधान के दायरा के अन्दर होना चाहिए।
(ख) दबाव समूह स्वार्थी तत्वों का समूह है। इसलिए इसे समाप्त कर देना चाहिए ।
उत्तर- दबाव समूह स्वार्थी तत्वों का समूह है—यह स्वार्थियों का ही कहना है जो सत्ता सम्भाले रहते हैं। किसी भी तरह दबाव समूह स्वार्थी तत्व का समूह नहीं है । यह क्षेत्र विशेष की समस्याओं को सुलझाने वालों का समूह है।
(ग) जनसंघर्ष लोकतंत्र का विरोधी है ।
उत्तर- हर्गिज नहीं। जनसंघर्ष किसी भी दृष्टि से लोकतंत्र का विरोधी नहीं है।लोकतंत्र का समर्थक है और इससे लोकतंत्र न केवल अस्तित्व में आता है, बल्कि मजबूत भी होता है ।
(घ) भारत में लोकतंत्र के लिए हुए आन्दोलनों में महिलाओं की भूमिका नगण्य है !
उत्तर-भारत में लोकतंत्र के लिए हुए आन्दोलनों में महिलाओं की भूमिका नगण्य है—यह कहना पूर्णतः सही नहीं है । जब पति आन्दोलन के क्रम में घर से बाहर जाता था, जो घर के बाल-बच्चों को महिलाएँ ही सम्भालती थीं । पति जब जेल जाता था, महिलाएँ प्रसन्नपूर्वक विदा करती थीं। जबतक वह जेल में रहता था तब तक धीरज धर कर बच्चों को सम्भालती थीं, यथा सम्भव पढ़ाने लिखाने का इन्तजाम करती थीं।
प्रश्न 4. राजनीतिक दल को ‘लोकतंत्र का प्राण’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर- यह कहना पूर्णतः सही है कि राजनीतिक दल ‘लोकतंत्र का प्राण’ है । यदि राजनीतिक दल नहीं रहें तो लोकतंत्र का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। देश की जनसंख्या अरबों में है और व्यक्ति-व्यक्ति सरकार में हिस्सेदारी नहीं कर सकता। इसी को आसान बनाने के लिए एक खास जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि को निर्वाचित करने की व्यवस्था है । ये प्रतिनिधि किसी-न-किसी राजनीतिक दल के ही सदस्य होते हैं। यदि ये सभी सदस्य निर्दलीय हों तो सरकार का गठन कठिन हो जाएगा। अतः जहाँ लोकतंत्र है, वहाँ राजनीतिक दलों की उपस्थिति होगी ही, इसमें दो मत नहीं है।
राजनीतिक दल ही जनता का समर्थन प्राप्त कर लोकसभा या विधानसभा में बहुमत बनाते और सरकार का गठन करते हैं। ये सारे काम राजनीतिक दल ही करते हैं । जिस राजनीतिक दल या दलों को बहुमत प्राप्त नहीं होता, वे विरोधी दल का काम करते हैं और सरकार को मानमानी करने से रोकते हैं । लोकमत का निर्माण करना भी राजनीतिक दलों का काम है। वे गाँव-गाँव में जाते हैं तथा छोटी-बड़ी सभाओं द्वारा जनता से सम्पर्क बनाते ही ऐसे संघर्ष का समाधान कभी-कभी मौजूदा संस्थाओं, जैसे: संसद या न्यायपालिका के माध्यम से हो गया,
लेकिन जब सत्ता में भागीदारी चाहनेवालों के बीच विवाद गहरा हो जाता है तथा संसद एवं न्यायपालिका जैसी संस्थाएँ स्वयं विवाद का भाग बन जाती है। परिणाम होता है कि संघर्ष का समाधान इनके जो अधिकार के बाहर अर्थात जनता द्वारा होता है। ऐसे जन संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का आधार राजनीतिक संगठन होते हैं। जनसंघर्ष में जनता की भागीदारी भले ही स्वतःस्फूर्त हो, लेकिन सार्वजनिक भागीदारी संगठित राजनीति के द्वारा ही संभव है। राजनीतिक दल, दबाव समूह और आन्दोलनकारी समूह संगठित राजनीति के सकारात्मक माध्यम हैं ।
प्रश्न 5. राजनितिक दल राष्ट्रीय विकास में किस प्रकार योगदान करते हैं?
उत्तर- किसी भी देश के राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक दलों की मुख्य भूमिका होती है। दरअसल राष्ट्रीय विकास के लिए राजनीतिक दल जनता को जागरूक बनाते हैं जागरूक समाज और राज्य में एकता एवं राजनीति स्थायित्व का होना आवश्यक है।इन सभी कामों में राजनीतिक दल ही मुख्य भूमिका निभाते हैं।सवाल यह है कि सरकार की ओर से जो जनसेवा का कार्य होता है, उससे जनता संतुष्ट है या नहीं। सरकार यह मानकर चलती है कि जितना काम किया गया है, वह पर्याप्त है। लेकिन सदैव ऐसा नहीं होता। यदि संतुष्ट हो जाने योग्य बात है तब भी विरोधी दल उसमें खामी निकालते हैं और जनता को बताते हैं कि उतना काम या वैसा काम हुआ ही नहीं, जितना काम या जैसा काम होना चाहिए था ।स्पष्टतः यहाँ राजनीतिक दल बँटे नजर आते हैं।
शासकदल जहाँ जिस बात को सही ठहराते हैं वहीं विरोधी दल उसे गलत सिद्ध करते हैं। इन विरोधाभासी बातों से सरकार को सतर्क होने का मौका मिलता है और जो भी विकासात्मक काम वह कराती है, वह पुख्ता होता है और समय पर होता है। इन बातों से जनता को सजग रहने की प्रेरणा मिलती है।राजनीतिक दल विभिन्न समूहों का नेतृत्व करते हैं। उन सभी समूहों को संतुष्ट रखने की जिम्मेदारी उस दल विशेष की हो होती है। जनता और सरकार में किसी विवाद के उत्पन्न होने पर उसे राजनीतिक दल ही निबटाते हैं। राजनीतिक दल किसी प्राकृतिक आपदा के समय सहायता का काम भी करते हैं। इस काम में जो दल जितना आगे रहता है उसकी साख उतनी ही अधिक होती है। इस प्रकार राजनीतिक दल राष्ट्रीय विकास में अपना सहयोग देते हैं।
प्रश्न 6. राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य बतावें ।
उत्तर- राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
(i) नीतियाँ बनाना तथा कार्यक्रम तय करना-राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य होता है जनता का समर्थन प्राप्त करना। इसके लिए वे नीतियाँ बनाते हैं तथा कार्यक्रम बनाते हैं। यह आवश्यक नहीं कि वे इसमें सफल ही हो जायँ
(ii) शासन का संचालन-राजनीतिक दल निर्वाचन में अपने-अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं और चाहते हैं कि उनके अधिकाधिक उम्मीदवार जीतें जिससे सदन में वे बहुमत बना सकें और सरकार का गठन करें। यदि बहुमत नहीं मिला तो विरोधी दल की भूमिका निभाएँ ।
(iii) लोकमत का निर्माण-लोकतंत्र में जनता की सहमति या समर्थन से ही सत्ता प्राप्त होती है। इसके लिए अपनी नीतियों का प्रचार कर राजनीतिक दल लोकमत का निर्माण करते हैं, जिससे उन्हें अधिक-से-अधिक वोट मिल सके। वोट ही बहुमत प्राप्त करने के साधन होता है।
(iv) राजनीतिक प्रशिक्षण-राजनीतिक दल जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण भी देते हैं ताकि वे चुनाव के समय प्रचारादि कार्य करें और मतदान केन्द्रों पर एजेंट बनकर बोगस मत डालने से रोक सकें ताकि उनका दल विजयी हो ।
(v) गैर राजनीतिक कार्य-राजनीतिक दल कभी-कभी गैर राजनीतिक काम भी करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों को सेवा प्रदान करने का काम भी ये करते हैं। चूँकि इनके पास युवकों का भी संगठन होता है अतः ऐसे कामों में ये सफल भी होते हैं। इन कामों के अलावे भी ये अनेक काम करते हैं, जो इनके दल के साथ ही जनहित के भी काम होते हैं ।
प्रश्न 7. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करता है? इसके मापदंड क्या हैं?
उत्तर- भारत में दो प्रकार के राजनीतिक दल दृष्टिगत होते हैं। एक तो वे हैं, जिनका जनाधार देश भर में रहता है। इनको राष्ट्रीय दल कहते हैं। दूसरे वे दल होते हैं जिनका जनाधार राज्य स्तर पर ही होता है। ऐसे दल को राज्य स्तरीय दल कहते हैं। राज्य स्तरीय दल को मानने वाले भी देश भर में हो सकते हैं, लेकिन वे नगण्य होते हैं। कोई दल राष्ट्रीय दल है या राज्य स्तरीय दल है, इसका निर्णय चुनाव आयोग करता है।
राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी दल को लोकसभा के कम-से- कम चार सीटें जीतना आवश्यक होती है। या यह भी हो सकता है | कि वह दल लोकसभा के कुल सीटों का 2 प्रतिशत सीटें जीत सकें अर्थात भारत में उसकी संख्या 11 होती है, जिनपर उन्हें जीत दर्ज करना आवश्यक होता है। इस प्रकार के दल को चुनाव आयोगस्थायी चुनाव चिह्न एलॉट कर देता है। भारत में बहुतेरे दल राष्ट्रीय दल हैं और बहुतेरे राज्य स्तरीय भी हैं।
जैसे : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट मार्क्सवादी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल आदि राष्ट्रीय दल हैं। वहीं लोकजन शक्ति पार्टी, समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि राज्य स्तरीय दल हैं। ऐसे ही तेलगू देशम दल, अकाली दल, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम स्तरीय जनता दल । नेशनल कांफ्रेंस, मुस्लिम लीग, असम गण परिषद्, बिजू जनता दल आदि भी राज्य स्तरीय जनता दल
कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. दलित पैंथर्स का परिचय देते हुए इसके कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर- दलित पैंथर्स उन नौजावनों का दल था, जो शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में पल कर बड़े हुए और अपने प्रयास से शिक्षित हुए थे। ये उस समुदाय से आते थे, जो भारतीय समाज में लम्बे अरसे से क्रूरतापूर्ण जातिगत अन्याय को भुगतते आ रहे थे। संविधान में इनके लिए संरक्षण का प्रावधान था, फिर भी इनसे छुआछूत के भेद होता था। ये उन कुँओं और तालाबों का उपयोग नहीं कर सकते थे जिनका निर्माण रोकना था ।सवर्णों द्वारा कराया गया था। दलित पैंथर्स का काम इन्हीं अत्याचार पूर्ण व्यवहारों को रोकना था
प्रश्न 2. ताड़ी-विरोधी आन्दोलन क्या था?
उत्तर- ताड़ी विरोधी आन्दोलन आंध्र प्रदेश की महिलाओं द्वारा चलाया गया.आन्दोलन था। ग्रामीण महिलाएँ पुरुषों द्वारा ताड़ी के सेवन को रोक कर घर में खुशहाली लाना चाहती थीं। एक तो पुरुष जो कमाते थे, उसे ताड़ी पर खर्च कर देते थे। कभी-कभी वे नशे के कारण काम पर भी नहीं जाते थे। इससे घर की माली हालत खराब होने लगी। बच्चों को पढ़ाना-लिखना कौन कहे, ये घर का खर्च भी नहीं चला पाती थीं। महिलाओं ने ताड़ी का विरोध किया और शराब का विरोध भी करने लगीं। यह आन्दोलन धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में फैल गया। इसका परिणाम हुआ कि महिलाओं को स्थानीय निकायों में स्थान आरक्षित गया।
प्रश्न 3. नर्मदा बचाओ आन्दोलन का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर- नर्मदा बचाओ आन्दोलन का उद्देश्य था कि कुछ थोड़े-से लोगों के लाभ के लिए बहुतों को न उजाड़ा जाय। बाद में आन्दोलन ने बड़े बाँधों के निर्माण का खुल्लम-खुल्ला विरोध शुरू कर दिया। 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति नर्मदा बचाओ जैसे आन्दोलन की ही उपलब्धि थी।
प्रश्न 4. राजा ज्ञानेन्द्र के गद्दी पर बैठने के बाद नेपाल में लोकतांत्रिक आन्दोलन का वर्णन करें ।
उत्तर- राजा ज्ञानेन्द्र के गद्दी पर बैठने के पूर्व से ही नेपाल में लोकतंत्र के लिए संघर्ष चल रहा था। वह ज्ञानेन्द्र के बाद विस्फोटक रूप लेने लगा। ज्ञानेन्द्र ने लोकतांत्रिक शासन को स्वीकारने से पूर्णतः अस्वीकार कर दिया। 2005 में उन्होंने प्रधानमंत्री को अपदस्तकर जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भी भंग कर दिया। फल हुआ कि 2006 में नेपाल में एक बड़ा आन्दोलन खड़ा हो गया। वहाँ सात दलों का एक गठबंधन हुआ। गठबंधन ने नेपाल की राजधानी में 4 दिनों के बन्द का आह्वान किया। इसका जनता पर काफी प्रभाव पड़ा। लाखों लोग जुटकर रोज लोकतंत्र की स्थापना की माँग करने लगे । राजा ने पुनः संसद को बहाल किया और गिरजा प्रसाद कोइराला को प्रधानमंत्री चुना । संसद ने राजा की अधिकांश शक्तियों पर प्रतिबंध लगा दी। अंततः राजा को हटना पड़ा और शासन पूरी तरह जनता के हाथ आ गया।