लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. जाति प्रथा भारत के बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है ?
उत्तर- जाति प्रथा मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे में बाँध देती है। उसे कोई अन्य पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती, भले ही, वह उस पेशे में पारंगत क्यों न हो। आधुनिक युग में, उद्योग-धंधा की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास के कारण कभी-कभी पेशा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। इस स्थिति में, व्यक्ति को पेशा बदलना अनिवार्य हो जाता है। लेकिन, जाति प्रथा के कारण पेशा बदलने की अनुमति नहीं मिलती है तो भुखमरी तथा बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो जाती है। इस प्रकार, जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न 2. भीमराव अंबेदकर किस विडम्बना की बात करते हैं?
उत्तर- भीमराव अंबेदकर अपने लेख ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ में आधुनिक युग में भी जातिवाद के पोषक होने की विडंबना की बात करते हैं। विडंबना का स्वरूप यह है कि लोग कार्यकुशलता के रूप में श्रम विभाजन की आवश्यकता दिखाता है और जाति-प्रथा को श्रम विभाजन बताते हुए इसका समर्थन करते हैं।
प्रश्न 3. अम्बेदकर के अनुसार, जाति प्रथा के क्या तर्क देते हैं ?
उत्तर- जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में तर्क देते कि कर्म के अनुसार जाति का विभाजन हुआ था। इस विभाजन से लोगों में वंशोगत व्यवसाय में निपुणता आती है अर्थात् कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। आधुनिक समय में ‘कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है और जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही रूप है। इसलिए यह भी आवश्यक है।
प्रश्न 4. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती ?
उत्तर- जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान लिया जाये तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रूचि पर आधारित नहीं है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत, जाति प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किये बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण, जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात् गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
प्रश्न 5. लेखक ने पाठ में किन पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है ?
उत्तर- जाति प्रथा का दूषित सिद्धान्त यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण, जैसे।माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात् गर्भधारण के समय।से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। जाति प्रथा में व्यक्ति की स्वयं की रूचि और निपुणता की परवाह नहीं की जाती ।
प्रश्न 6. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक बताया है ?
उत्तर- लेखक के अनुसार, सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए समाज में स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे की भावना होनी चाहिए क्योंकि समाज में सबके कल्याण एवं सहयोग की भावना होती है। समाज के बहुविद्य हितों में सबका समान भाग होता है। लेखक ने यह भी आवश्यक माना है कि समाज में यह गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सकें।
प्रश्न 7. लेखक के अनुसार, आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए ?
उत्तर- लेखक के अनुसार, आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सकें। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। लिए क्या आवश्यक है ?
प्रश्न 8. कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके।
प्रश्न 9. लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सकें। समस्या किसे मानते हैं और क्यों ?
उत्तर-लेखक जाति प्रथा को आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न भी बड़ी समस्या मानते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि जाति प्रथा में व्यक्ति की स्वयं की रुचि और निपुणता की परवाह नहीं की जाती। व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार, कोई भी पेशा अपना नहीं सकता। अरुचि के कारण व्यक्ति की क्षमता घटने लगती है और धीरे-धीरे वह काम को टालता जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी जाति प्रथा खतरनाक है।