हिंदी (गद्यखंड) पाठ -11.नौबतखाने में इबादत

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।  एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पठित पाठ से आधार पर दें। [2011A, 2014C, 2020AII, 2024AII
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ एक महान् शहनाई वादक थे। उन्हें शहनाई का पर्याय माना जाता है। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई होती है। शहनाई का तात्पर्य उसका हाथ और हाथ का मतलब उनकी फूँक और शहनाई की जादुई आवाज लोगों को इस प्रकार सम्मोहित कर देती थी कि लोग प्रसन्नता से झूम उठते थे। शहनाई में सात सुरों का सरगम भरा है। उसमें सही ताल और राग है। शहनाई में परावरदिगार, गंगा मइया तथा गुरु की शिक्षा थी। उन्होंने अपनी शहनाई से छोटे-छोटे सुर का करतब शुरू किया। फिर, उनकी शहनाई और अधिक सुरीली होनी शुरू हो गई। उनकी फूँक में अजान की तासीर उतरती चली गई और देखते-देखते शहनाई डेढ़ शतक के साज से दो शतक का साज बनकर साजो की कतार में सरताज बन गई। अतः एक महान् कलाकार के सारे गुण उनमें विद्यमान थे। भारतरत्न शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म डुमराँव में ही  हुआ था। इसके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के ही निवासी थे। शहनाई और डुमराँव का एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध भी है और वह यह है कि शहनाई में प्रयुक्त होने वाली रोड या रीड नरकट (एक प्रकार का गन्ना-सा पौधा जो खोखला होती है) डुमराँव में सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इन्हीं कुछ कारणों से डुमराँव की महत्ता है।

प्रश्न 2. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है ? [2015 AII]
उत्तर- डुमराँव मशहूर शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म स्थान है । बिस्मिल्ला खाँ भारत के मशहुर शहनाईवादक थे। इन्हें ‘भारतरत्न’ पुरस्कार भी प्राप्त है। साथ ही, शहनाई में प्रयुक्त होनेवाली रीड या नरकट (एक प्रकार का गन्ना-सा पौधा, जो खोखला होता है) डुमराँव में सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है । इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के ही निवासी थे  इसलिए डुमराँव का महत्त्व है ।

प्रश्न 3. बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का वर्णन पाठ के आधार पर दें । [2019C]
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहार के डुमराँव में हुआ । इनका बचपन का नाम अमीरूद्दीन था। 5-6 वर्ष की उम्र में बिस्मल्ला खाँ अपने ननिहाल काशी आ गए थे । नाना के शहनाईवादन को बड़े गौर से सुनते और नाना के कही
बाहर चले जाने पर उनकी शहनाई बजाने की कोशिश करते। शहनाई बजाते हुए मामू जब सम पर आते तो पत्थर उठाकर जमीन पर दे मारते । सिनेमा भी खूब जाया करते थे । इस प्रकार, बिस्मिल्ला खाँ बचपन से शहनाई बजाने के प्रति आकृष्ट थे ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. “फटा सूर न बख्शें । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सिल जाएगी।” आशय स्पष्ट करें। [2023AII]
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ की गुणग्राह्यता पर प्रकाश डाला है । लेखक का कहना है वे अपनी कला को ही मुख्य मानते थे । उनका मानना था कि गुण के समक्ष वेश-भूषा अथवा भौतिक चमक-दमक मूल्यहीन होते हैं। संसार में गुणवान अमर हो जाता है जबकि बाहरी चमक-दमक नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए जब उन्हें फटी लुंगी न पहनने का आग्रह किया गया तो उन्होंन उत्तर दिया-ईश्वर फटा हुआ सुर न दे । लुंगी आज फटी है तो कल सिल जाएगी।’ लेकिन, सुर बिगड़ने पर जीवन का आनन्द खत्म हो जाएगा। तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के लिए शहनाई से सुर का विशेष महत्त्व है, वेश-भूषा का नहीं ।

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