हिंदी (पद्यखंड) पाठ – 1.राम नाम बिनू बिरथे जगि जनमा

 राम नाम बिनू बिरथे जगि जनमा,
जो नर दूख में दूख नहिं माने

लघु उत्तरीय प्रश्न :-

प्रश्न 1. जो नर दुख में दुख नहीं माने, कविता का भावार्थ लिखें। [2014AII]
उत्तर- ‘जो नर दुख में दुख नहिं मानै’ शीर्षक पद में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता
हासिल करने पर जोर दिया गया हैं। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर इस पद में गोविन्द से एकाकार होने की प्रेरणा देता है। दुख में हमें दुखी नहीं होना है। हममें सुख, स्नेह और भय नहीं होना चाहिए। सोना को मिट्टी समझना चाहिए। हर्ष और शोक से न्यारा रहना चाहिए। मान-अपमान से दूर रहना चाहिए। मन से आशा का त्याग कर देना चाहिए। जग में निराशा में भी जीने की कला सीखनी चाहिए। काम और क्रोध का स्पर्श भी नहीं होना चाहिए। ऐसे ही देह में ब्रह्म-ईश्वर का निवास होता है। जिस पर गुरु की कृपा होती है, वहीं इस उपाय को पहचान पाता है। गुरु नानक कहते हैं कि ऐसे ही लोग गोविन्द में लीन हो पाते हैं। जिस तरह पानी में पानी मिलकर एकाकार हो जाता है । उसी तरह, इंसान भी गोविन्द (ईश्वर) से मिलकर एकाकार हो जाता है। कवि राम-नाम के जप के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है अर्थात् मानव शरीर धारण करने पर जो राम के नाम का स्मरण अर्थात् सच्चे हृदय से जप नहीं करता है तथा सांसारिक विषय-वासनाओं अर्थात् बाह्यडंबर में फँसा रह जाता है, उसका मनुष्य योनि में जन्म लेना व्यर्थ साबित होता है। हैं ?

प्रश्न 2. कवि गुरुनानक किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानते हैं ? [2016AI, 22AI]
उत्तर- कवि राम-नाम के जप के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानते हैं अर्थात् मानव शरीर धारण करने पर जो राम के नाम का स्मरण अर्थात् सच्चे हृदय से जप नहीं करता है तथा सांसारिक विषय-वासनाओं अर्थात् बाह्याडंबर में फँस रह जाता है, उसका मनुष्य योनि में जन्म लेना व्यर्थ साबित होता है ।

प्रश्न 3. वाणी कब विष के समान हो जाती है ? 12017C, 2019A1]
उत्तर-वाणी तब विष के समान हो जाती है, जब व्यक्ति राम-नाम की चर्चा या भजन न करके सांसारिकता की चर्चा करता है। तात्पर्य यह कि जब व्यक्ति ईश्वर के नाम की महिमा का गुणगान न करके मति-भ्रमता के कारण पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड या बाह्याडंबर में विश्वास करने लगता है।

प्रश्न 4. राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा पद का मुख्य भाव क्या है ? [2018AII]
उत्तर-इस पद के माध्यम से गुरूनानक कहते हैं कि राम-नाम के जाप के बिना जगत में जन्म व्यर्थ है। कवि ने बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल हृदय से राम-नाम की कीर्तन पर बल दिया है।

प्रश्न 5. हरिरस से कवि का क्या अभिप्राय है ? [2019AII, 23AII]
उत्तर-भगवान के नाम कीर्तन से भक्ति की प्राप्ति होती है और इसी से भक्तिरस मिलता है। यही भक्तिरस, कवि के अनुसार हरिरस है।

प्रश्न 6. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ? [2019C, 2024AI)
उत्तर- गुरु की कृपा से ब्रह्म को प्राप्त करने की युक्ति की पहचान हो जाती है कि जो व्यक्ति दुख-सुख, मान-अभिमान, निन्दा-स्तुति, मान-अपमान, आशा-मनसा, काम-क्रोध, हर्ष-शोक आदि से दूर है और सोने को भी मिट्टी ही समझता है, उसी के साथ ब्रह्म का निवास है ।

प्रश्न 7. भक्ति के लिए किसे आवश्यक माना गया है ? [2021AII]
उत्तर– मानव जीवन में भक्ति के लिए गुरू एवं गुरू की कृपा को अनिवार्य माना गया है।

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