लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. गाँधीजी बढ़िया शिक्षा किसे कहते हैं ?
अथवा, शिक्षा के ध्येय गाँधीजी क्या मानते थे, और।क्यों ? [2012A, 2014C, 2022AII]
उत्तर- ‘चरित्र निर्माण’ को गाँधीजी शिक्षा का ध्येय मानते थे। उनका कहना था कि चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ही समाज को नई दिशा दे सकता है। वे मानते थे कि साहस, बल, सदाचार और बड़े लक्ष्य के लिए काम करने में आत्मोसर्ग की शक्ति का विकास साक्षरता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। पुस्तकीय ज्ञान तो उस उद्देश्य कासाधनमात्र है। गाँधीजी कहते थे कि बिना चरित्र निर्माण के बच्चे-त्याग, सहानुभूति, प्रेम, सदाचार के मूल्य को नहीं समझ पायेंगे। उनका ख्याल था कि व्यक्ति का जब चरित्र निर्माण हो जाएगा तो समाज अपना काम स्वयं संभाल लेगा। इसलिए चरित्र-निर्माण की शिक्षा आवश्यक है।
प्रश्न 2. गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का जरूरी अंग क्या होना चाहिए? [2018AI]
उत्तर- गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का जरूरी अंग यह होना चाहिए कि बालक जीवन-संग्राम में प्रेम से घृणा को, सत्य से असत्य को और कष्ट-सहन से हिंसा को आसानी के साथ जीतना सीखें। इस सत्य के बल अनुभव करने के कारण ही गाँधीजी ने सत्याग्रह-संग्राम के उत्तरार्ध में पहले टॉल्सटाय फॉर्म में बाद में फिनिक्स आश्रम में बच्चों को इसी ढंग की तालीम देने की भरसक कोशिश की थी।
प्रश्न 3. गाँधीजी किस के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं ? क्यों ? [2021AII]
उत्तर- गाँधीजी का विचार है कि भारतीय संस्कृति उन सभी भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य का प्रतीक है जो भारत में रस-बस गई हैं। किन्तु, यह सामंजस्य प्राकृतिक तौर पर स्वदेशी है जिसमें सबका अपना स्थान सुरक्षित है। यह अमेरिकी ढंग का एक प्रमुख संस्कृति द्वारा कृत्रिम और जबरन दूसरी संस्कृति पर हावी होकर एकता कायम करने जैसा सामंजस्य नहीं है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. “मेरा धर्म कैदखाने का धर्म नहीं है ।” आशय स्पष्ट करें । हैं [2023AI]
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक अपनी संस्कृति के महत्त्व को समझने या हृदयांकित करने की सलाह दी है। लेखक का कहना है कि दूसरी संस्कृति के महत्त्व को समझने से पहले अपनी संस्कृति के मूल्य को समझने का
प्रयास करना चाहिए, क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वयं की संस्कृति से उच्च या निम्न माना जाता है । दूसरों की संस्कृति या भाषा पर कोई देश गौरवान्वित नहीं हो सकता । व्यक्ति या देश तभी गौरवान्ति होता है जब वह अपने उत्तम विचार प्रकट करता है। लेखक चाहता है कि हर संस्कृति वाले लोग यहाँ आवे और स्वतंत्रता के साथ विचरण करें। लेकिन, लेखक यह नहीं चाहता कि हम अपनी भाषा या संस्कृति को भूल जाएँ, उसकी अपेक्षा करें तथा उत्तम विचार अपनी भाषा में प्रकट न करें क्योंकि मेरा धर्म कैदखाने का धर्म नहीं है। हमारी संस्कृति अन्य देशों की अपेक्षा श्रेष्ठ, महान् तथा आदर्शवादी है।