हिंदी (पद्यखंड) पाठ – 12. मेरे बिना तुम प्रभु

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. मेरे बिना तुम प्रभु कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए। [2012A, 2024AI, IIJ अथवा, मेरे बिना तुम प्रभु का केन्द्रीय भाव क्या है ? [2018C]
उत्तर- ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि भक्त और भगवान दोनों एक-दूसरे के पूरक है अर्थात् दोनों के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। यदि प्रभु जल पीते है तो भक्त उनका जलपात्र बनता है। कवि ने भक्त और ईश्वर के बीच के संबंधों को साबित करने के लिए जलपात्र और मदिरा का प्रयोग किया है। भक्त के बिना ईश्वर एकाकी और निरुपाय है। भक्त बिना गृहहीन होकर भगवान भी इधर-उधर भटकते रहेंगे। इस प्रकार, भगवान और भक्त एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं।

प्रश्न 2. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ? [2014AII, 2017AII, 2023AII |
उत्तर- कवि ईश्वर की भक्ति में लीन होकर कहते हैं कि ईश्वर रूपी जल मानव रूपी पात्र में निवास करता हैं। उनकी सेवा में उन्होंने अपने आपको जलपात्र और मदिरा के रूप में प्रस्तुत किया है क्योंकि उनका मानना है कि भगवान भक्त की प्रेमपूर्ण भक्ति से उसी प्रकार मस्त हो जाते हैं जैसे मदिरा का पान कर कोई सुधबुध खो बैठता है।

प्रश्न 3. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों [2015AII, 2022AII] 
उत्तर- शानदार लाबदा ईश्वर का गिर जायेगा, क्योंकि यदि भक्त का अस्तित्व नहीं रहेगा तो भगवान का भी कोई महत्त्व अथवा अर्थ नहीं रह जाएगा।

प्रश्न 4. कवि रेनर मारिया रिल्के किसको कैसा सूख देते थे ? [2022AI]
उत्तर- कवि अपने कपोलों की नर्म शय्या पर विश्राम कर रही ईश्वर की कृपादृष्टि को सुख प्रदान करता था। वह उसे चट्टानों की ठंडी गोद में सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख देता था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. आशय स्पष्ट कीजिए :
“मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?” [2017C]
उत्तर- इन पंक्तियों में कवि रेनर मारिया रिल्के प्रभु को संबोधित करता हुआ कहता है कि ईश्वर ! इस संसार में तुम्हारे स्वरूप, तुम्हारे यश, तुम्हारे कृत्य और तुम्हारी ख्याति तथा महिमा के आधार मेरे जैसे भक्त ही हैं। अगर तुमने ‘मुझ जैसे भक्तों को खो दिया तो तुम्हारा कोई भी महत्त्व अथवा अर्थ नहीं रह जाएगा । कहने का आशय यह है कि ईश्वर का अस्तित्व भक्तों की आस्था पर ही निर्भर है । हम सब ऐसा मानते हैं कि ईश्वर है और वे कृपा तथा कल्याण के अदृश्य स्रोत है । इसीलिए हमें ईश्वर की सत्ता तथा सर्व व्यापकता की अनुभूति होती है । अगर हम नास्तिक हो जाएँ अथवा हम मनुष्यों का अस्तित्व न रहे तो ईश्वर के अस्तित्व की तो कल्पना भी नहीं हो सकेगी। इसीलिए भक्त के कारण ही भगवान की महत्ता बनी हुई है ।

Leave a Comment