बोध और अभ्यास : प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. मंगु के प्रति माँ और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार में जो फर्क है, उसे अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर—मंग के प्रति माँ का सहज व्यवहार था। वह उसे बोझ न मानकर,का कर्त्तव्य समझकर उसकी सेवा करती थीं। यदि कोई उसे पागलों के अस्पताल मेंभर्ती कराने की सलाह देता तो उनका हृदय कराह उठता। वह कहती कि “मैं मां होकर सेवा नहीं कर सकती, तो अस्पताल वालों को क्या पड़ी है ? अपंग जानवरों की गौशालाओं में भर्ती कर आने जैसा ही यह कहा जाएगा।” तात्पर्य यह कि माँमंग की विवशता के कारण उसे अपने से अलग करना नहीं चाहती थी। वह जिस तरह से उसकी सेवा लाड़-प्यार से करती थी, उसे देखकर लोग दंग रह जाते थे। मां को मांगू के अलावे तीन संताने थी। दो पुत्र तथा एक पुत्री दोनों पुत्र पथ लिखकर शहर में नौकरी करते थे तथा पुत्री ससुराल चली गई थी। घर पोते पोतियो बहू से भरा हुआ था, लेकिन मंगू की सेवा में किया करती थी।
प्रश्न 2. माँ मंगु को अस्तपाल में क्यों नहीं भर्ती कराना चाहती ? विचार करें ।
उत्तर—माँ अस्पताल को गौशाला की उपमा देती थी। उनका मानना था कि जबमाँ होकर वह अपनी संतान की सेवा नहीं कर सकती है तो अस्पताल वालों को क्यापड़ी है ? मंग जन्म से ही पागल एवं गूंगी थी। उसे न तो पेशाब-पाखाना कहाँ करना है और कहाँ न करना है, का ख्याल रहता था और न कपड़े आदि का ही। रात भर माँ उस पर ध्यान रखती थी। पेशाब करने पर वस्त्र बदल देती थी, ओढ़ना हटाने पर: ओढ़ा देती थी। अपने हाथों से मंगु के मुँह में भोजन डालती थी। यानी मंगु कासारा काम माँ स्वयं करती थीं। इसीलिए उन्हें लगता था कि अस्पताल में इस प्रकारकौन देखभाल करेगा ? निःस्वार्थ भाव से एक माँ ही अपनी संतान की विवशता का ख्याल रख सकती है। इसी कारण वह हर सलाह देने वालों को यह कहकर टालदेती थी कि अपनी संतान की सेवा न करके अस्पताल में भर्ती कराना अपंग जानवरों की गौशालाओं में भर्ती कर आने जैसा ही होगा। इन्हीं कारणों से वह मंग कोअस्पताल में भर्ती कराना नही। चाहती थी।
प्रश्न 3. कुसुम के पागलपन में सुधार देख मंगु के प्रति माँ, परिवार औरसमाज की प्रतिक्रिया को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर—कुसुम के पागलपन में सुधार देख हर कोई मंगु को अस्पातल में भर्ती करने की सलाह माँ को देने लगा। वह लोगों की बातों का विरोध किए बिना चुपचापउनकी सलाह सुनती रहीं, जो पहले ऐसी सलाह पर हर एक को यही जवाब देती कि “मैं माँ होकर सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वालों को क्या पड़ा है ? यहतो अपंग जानवरों को गौशालाओं में भर्ती कराने जैसा ही होगा।” लेकिन कुसुम के पागलपन की सुधरी हुई स्थिति देख उनका विचार बदल जाता है। और कुसुमं को अपने घर बुलाकरअस्पताल की जानकारी लेती है। कुसुम की बातों से अस्पताल के प्रति उनके मन में पड़ी गाँठ खुल जाती है, तथा अस्पताल के प्रति श्रद्धाभाव का संचरण होता है। मनमें नई आशा पैदा होती है कि मंगु के भाग्य में दवाखाने जाने से पागलपन मिटने कालिखा होगा, यह किसे पता। यह सोच बड़े पुत्र को पत्र भेजकर बुलाती हैं। साथ ही, परिवार के लोगों के उदासीन भाव को देखकर वह अस्पताल में भर्ती करने का निर्णय लेती है।
प्रश्न 4. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें।
उत्तर— ‘माँ’ कहानी का शीर्षक कथा-वस्तु या कहानी के आधार पर ‘माँ’गया है। कहानी माँ के ही चारों ओर घूमती हैं। माँ इस कहानी की मुख्य पात्र उनकी सबसे छोटी संतान मंगु जन्म की पागल तथा गूंगी है। उसकी देख-रेख और सेवा माँ करती है। परिवार के अन्य सदस्य—दो बड़े पुत्र, उनकी पत्नियाँ विवाहिता पुत्री आदि सभी मंगु को अस्पताल में भर्ती कराने के पक्ष में हैं,हर कोइ उसे परिवार का बोझ मानते हैं, सिर्फ माँ ही उसकी सेवा में लगी होती है। कहानीने एक माँ की हार्दिक ममता को प्रकट कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है।माँ की ममता उस संतान के प्रति अधिक होती है, जो असहाय होता है। उसकीके लिए माँ दिन-रात बेचैन रहती है। यह नहीं चाहती है कि उसकी कोई संतानरहे। इसीलिए कहानी के आरंभ से अंत तक माँ छाई रहती है। मंगु के साथ मनिःस्वार्थ सेवा एवं आत्मीयता देख पुत्र, पड़ोसी, डॉक्टर तथा नर्स अचंभित रहहैं। कहानी तीव्रगति से बढ़ती हुई चरमावस्था पर तब पहुँच जाती है जब मपगली पुत्री के वियोग में पुत्री की श्रेणी में पहुँच जाती है।कहानीकार अपने उद्देश्य की प्राप्ति पूर्ण सफलता के साथ कर लेता है। इस कहानीका शीर्षक ‘माँ’ पूर्णतः सार्थक है, क्योंकि एक माँ अपनी संतान की खुशी केक्या कर सकती है ? उसकाप्रतिपादन पूर्ण सफलता के साथ हुआ है।
प्रश्न 5. मंगु जिस अस्पातल में भर्ती की जाती है, उस अस्पतालकर्मचारी व्यवहारकुशल हैं या संवदेनशील ? विचार करें।
उत्तर— मंगु जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उस अस्पताल के कर्मसंवदेनशील हैं। उसका पता तब चलता है, जब मंगु अस्पताल में अन्दर जाती हैं। सिर पर हाथ रख, माँ रोज की भाँति स्नेहमय ‘बेटा’ शब्द उच्चारित करने कि तभी उनका स्वर फूट पड़ा, मरने के समय जैसी एक लंबी सिसकी फूटइस आक्रंदन में सारा अस्पताल डूब गया। सारे कर्मचारियों के हृदय भर गए,आद्र हो उठीं। इतना स्नेह भरा किसी पागल का स्वजन वहाँ किसी ने नहीं देखा डॉक्टर ने आश्वासन भरे शब्दों में कहा “माँ जी, बेटी को अस्पताल में नहीं,के घर छोड़े जा रही हैं, ऐसा मानिएगा। माँ जी का ममतामयी रूप देखकरकी शक्ति लुप्त हो गई। अस्पताल के सारे लोग माँ की करुणा की धारा में बसंवेदनशील हो जाते हैं।
एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न *. माँ के बड़े पुत्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर—माँ के बड़े पुत्र शहर में नौकरी करते हैं। मंगु जन्म से ही गूंगी और पागल है। उसे परिवार का बोझ मानते हुए भी उसके प्रति माँ का स्नेह देख चुप रहजाते हैं। पत्नी की फरियाद सुन तो लेते हैं किन्तु माँ के विरुद्ध कोई प्रतिक्रिया व्यक्तनहीं करते हैं। माँ का पत्र पाते ही घर आ जाते हैं तथा मंगु को अस्पताल में भर्तीकरने के लिए मजिस्ट्रेट से आर्डर करवा लेते हैं। वह मंगु को परिवार का बोझमानकर अस्पताल में भर्त्ती तो करा देते हैं, लेकिन अस्पताल से विदा लेते समय माँकी करुणा से इस प्रकार प्लावित होते हैं कि उनका हृदय कराह उठता है। मानवताइतनी जोर मारती है कि अपने जीते-जी मंगु को अच्छी तरह पालने की प्रतिज्ञा करबैठते हैं तथा उसका मल-मूत्र तक धोने का निश्चय करते हैं। रात भर पगली बहनके प्रेम में करवट बदलते रह जाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बड़ा पुत्र स्नेहशील,कर्त्तव्य परायण तथा मानवीय गुणों से युक्त व्यक्ति हैं।