लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions) :
प्रश्न 1. आय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- आय वह मापदंड है, जिसके द्वारा देश के आर्थिक विकास की स्थिति का अकलन किया जाता है। किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए उसके नागरिकों की व्यक्तिगत अथवा सामाजिक आय सम्पन्नता या विपन्नता की पहचान है। समग्र रूप से इसे प्रति- व्यक्ति आय या राष्ट्रीय आय के रूप में मापा जाता है।
प्रश्न 2. सकल घरेलू उत्पाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- किसी भी देश में किसी दिए हुए वर्ष में वस्तुओं और सेवाओं की जो कुल मात्रा उत्पादित की जाती है, उसे सकल घरेलू उत्पादन (Gross Domestic Product या G.D.P.) कहा जाता है।
प्रश्न 3. प्रति व्यक्ति आय क्या है?
उत्तर- प्रति-व्यक्ति आय को ज्ञात करने के लिए देश विशेष की राष्ट्रीय आय में उस देश की कुल जनसंख्या से भाग दिया जाता है। जो भागफल आता है उसी को प्रति- व्यक्ति आय कहते हैं। प्रति व्यक्ति आय का आकलन निम्नलिखित प्रकार से कियाजाता है। प्रति-व्यक्ति आय = देश की कुल जनसंख्या
प्रश्न 4. भरत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना कब और किनके द्वारा की गई थी ?
उत्तर- भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना सन् 1868 में दादा भाई नौरोजी द्वरा की गई थी। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Poverty and Un-British Rule in India’ में उल्लेख किया था कि भारत में प्रति-व्यक्ति वार्षिक आय 20 रुपए है। इसके बाद प्रसिद्ध अर्थशास्त्री Dr. V.K.R. V. Rao ने 1925-1929 के बीच की भारत की राष्ट्रीय आय का आँकड़ा प्रस्तुत किया, जो काफी प्रचलित हुआ ।
प्रश्न 5. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा होती है?
उत्तर- भारत में राष्ट्रीय आय की गणना केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन’ (Central Statistical Organisation) द्वारा होती है। इस संस्था की स्थापना 1954 के बाद केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय आय के आँकड़ों के संकलन करने के लिए किया गया। यह संस्था नियमित रूप से वर्ष-प्रति-वर्ष राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्रकाशित करती है।
प्रश्न 6. राष्ट्रीय आय की गणना में होने वाली कठिनाइयों का वर्णन करें ।
उत्तर- राष्ट्रीय आय की गणना करने में अनेक तरह की व्यावहारिक कठिनाईयाँ हैं, जिनके प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं : (i) आँकड़ों को एकत्र करने में कठिनाई होती है, क्योंकि आँकड़े सही नहीं हो तो देश के विकास की सही स्थिति प्राप्त नहीं हो पाती। (ii) दोहरी गणना की आशंका रहती है, कारण कि एह ही आय को दो-दोर बार जोड़ लेने की आशंका बराबर बनी रहती है। (iii) मूल्य को मापने में कठिनाई भी होती है। किसी उत्पाद का मूल्य कितना हो यह निश्चित करना कठिन होता है।
Bihar Board 10th Economics Chapter 2 Subjective दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions) :
प्रश्न 1. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने कब और किस उद्देश्य से राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया ?
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने अगस्त 1949 में प्रो. पी. सी. महालनोबिस की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय आय समिति’ (National Income Committee) का गठन किया। इस समिति के गठन का उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय आय (National Income of India) का अनुमान लगाना था। राष्ट्रीय आय समिति ने अपना पहला रिर्पोट 1951 में प्रस्तुत किया। इसमें सन् 1948-49 के लिए देश की कुल आय 8,650 करोड़ रुपए बताई गई। इस आकलन में भारत में प्रति-व्यक्ति आय 246.9 रुपए थी। सन् 1954 में सरकार ने राष्ट्रीय आय के आँकड़ों के संकलन का भार केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (Central Statistical Organisation) के जिम्मे लगा दिया। इस संगठन की स्थापना भी भारत सरकार ने हीकी थी। यह संगठन अब नियमित रूप से प्रत्येक आर्थिक वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्रकाशित करती है।
प्रश्न 2. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें। इसकी गणना की प्रमुख विधियाँकौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर- राष्ट्रीय आय की परिभाषा देने के पूर्व हम कुछ विख्यात अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाओं को चिह्नित करेंगे। प्रो. अलफ्रेड मार्शल ने कहा है कि “किसी देश की श्रम एवं पूँजी का देश के प्राकृतिक साधनों का उपयोग करने से प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं पर विभिन्न प्रकार की सेवाओं का जो शुद्ध समूह उत्पन्न होता है, उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं।” इसी प्रकार प्रो. पीगू ने राष्ट्रीय आय को परिभाषित करते हुए कहा है कि “राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वस्तुनिष्ठ अथवा भौतिक आय का वह भाग है, जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है और जिसकी मुद्रा के रूप में माप हो सकती है।” ऐसे ही अन्य कई अर्थशास्त्रियों ने अपनी-अपनी परिभाषाएँ दी हैं। लेकिन हम साधारण भाषा में साधारण रूप से राष्ट्रीय आय को परिभाषित करेंगे : देश की सम्पूर्ण श्रम शक्ति तथा पूँजी के सहयोग तथा देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके जो भौतिक तथा अभौतिक उत्पादन होता है उसके मौद्रिक रूप में व्यक्त मूल्य को ‘राष्ट्रीय आय’ कहते हैं। राष्ट्रीय आय की गणना की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं : (i) सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) (ii) सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product) (iii) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product)
प्रश्न 3. प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय आय का एक भाग है, जबकि राष्ट्रीय आय पूरे देश की कुल आय का योग है। राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने से जो भागफल आता है वही राष्ट्रीय आय कहलाता है। इसके आकलन का तरीका निम्नांकित है : राष्ट्रीय आयप्रति व्यक्ति आय = देश की कुल जनसंख्या संकेत : इसके बाद प्रश्न 2 के उत्तर का पहले भाग
प्रश्न 4. राष्ट्रीय आय में वृद्धि भारतीय विकास के लिए किस तरह से लाभप्रद है? वर्णन करें ।
उत्तर- किसी भी देश की राष्ट्रीय आय में उस देश के विकास में लाभप्रद होती है। यही बात भारत पर भी लागू होती है। भारत में राष्ट्रीय आय में अधिकाधिक वृद्धि होने पर ही भारतीय विकास के लिए लाभप्रद रह सकता है। जैसा कि हम जानते हैं, किसी भी देश के विकास के लिए जो भी प्रयास किए जाते हैं, वह उस देश की सीमा क्षेत्र के अन्दर रहने वाले लोगों की उत्पादकता या उनकी मौद्रिक आय को बढ़ाने के माध्यम से की जाती है। अभी की स्थिति में विश्व के सभी देश अपने-अपने ढंग से ऐसा बजट तैयार करते हैं, जिसमें विकास की योजना को प्रमुखता दी जाती है। इसका मुख्य लक्ष्य देश के उत्पादन के साधनों की क्षमता बढ़ाने की रहती है। इससे देश के लोगों को अधिक आय की प्राप्ति हो । लोगों की आय बढ़ने से ही देश की राष्ट्रीय आय बढ़ सकती है। राष्ट्रीय आय बढ़ने से ही देश का विकास सम्भव है। फलतः शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूँजी का निवेश हो सकेगा। इससे नए-नए रोजगारों का भी सृजन सम्भव हो सकेगा । अन्ततोगत्वा इसका प्रभाव प्रति व्यक्ति आय पर पड़ेगा, जिससे राष्ट्रीय आय भी प्रभावित हो सकेगी। वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाकर ही व्यक्तियों की आय बढ़ाई जा सकेगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि उत्पादन को और अधिक बढ़ाकर ही हम देश को उच्चतम विकास की स्थिति तक पहुँचा सकते हैं ।
प्रश्न 5. देश के विकास में प्रति व्यक्ति आय के महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी। लिखें ।
उत्तर- प्रति व्यक्ति आय ही किसी देश के विकास जी जड़ है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने पर ही राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो सकती है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर ही कोई देश अपना विकास कर सकता है। राष्ट्रीय आय और प्रति-व्यक्ति आय-दोनों में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। प्रति व्यक्ति आय के बढ़े बिना राष्ट्रीय आय में वृद्धि नहीं होसकती । राष्ट्रीय आय की वृद्धि से ही देश का विकास हो सकेगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय के सूचकांक में जब वृद्धि होती है तो निश्चित रूप से लोगों के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी। अतः देश के विकास में प्रति व्यक्ति आय का काफी महत्व है।
प्रश्न 6. क्या प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है? वर्णन करें ।
उत्तर- हाँ, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है। हम जिस दृष्टि से भी विचारें—पहले स्तर पर प्रति व्यक्ति आय ही आती है। भले ही पहले राष्ट्रीय आय को लिया जाता है और उसमें देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है और भागफल को प्रति-व्यक्ति आय का माना जाता है। लेकिन प्रति-व्यक्ति आय को ही मूल रूप से महत्त्व दिया जाता है। जिस देश में प्रति व्यक्ति आय जितना ही अधिक होती है, उस देश को उतना ही अधिक विकसित माना जाता है। इन बातों से स्पष्ट होता है कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ही राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है। इसको पलटकर हम ऐसा भी कह सकते हैं कि जिस देश की राष्ट्रीय आय जितना ही अधिक होगी, उस देश की प्रति-व्यक्ति आय भी उतना ही अधिक होगी। इस दृष्टि से भी हम कह सकते हैं कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ही राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है।