History Chapter 5 अर्थ – व्यवस्था और आजीविका |
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 20 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किन्हीं दो कारणों को बतायें।
उत्तर : फैक्ट्री प्रणाली के विकास के प्रमुख दो कारण निम्नलिखित थे (i) नये-नये यंत्रों का आविष्कार तथा (ii) गाँवों में गृह उद्योग की समाप्ति, जिससे शहरों में सस्ते श्रम की प्राप्ति।
प्रश्न 2. बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर-औद्योगीकरण के सफल होने के फलस्वरूप समाज में स्पष्टतः तीन वर्ग हों गए: (i) पूँजीपति वर्ग, (ii) बुर्जुआ वर्ग तथा (iii) मजदूर वर्ग। बीच का बुर्जुआ वर्ग ही मध्य वर्ग था, जिसके हाथ में व्यापार की कुँजी थी।
प्रश्न 3. अठारहवीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन-से थे?
उत्तर-अठारहवीं शताब्दी में भारत में वे सारी वस्तुएँ बनती थी, जो मनुष्यों द्वारा उपयोग किया जाता है। भले ही ये उद्योग गृह उद्योग में चलते थे। जैसे कपड़ा उद्योग, कम्बल उद्योग, गुड़ उद्योग, तम्बाकू उद्योग आदि ।
प्रश्न 4. निरद्योगीकरण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- रनिरूद्योगीकरण से मेरा तात्पर्य है उद्योगों का अभाव। ब्रिटेन में औद्योगीकरण की सफलता ने भारत को उद्योगों से पूर्णतः महरूम कर दिया। इसी को निरूद्योगीकरण कहा जाता है।
प्रश्न 5. औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई? इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर-औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 में हुई। इस आयोग का उद्देश्य था कि वह भारतीय उद्योग और व्यापार के भारतीय वित्त से सम्बंधित प्रयत्नों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाया जाय, जिसे सरकार सहायता दे सके।
लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-औद्योगीकरण उस औद्योगिक क्रांति को कहते हैं, जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम के द्वारा न होकर मशीनों के द्वारा होता है। औद्योगीकरण में उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने के कारण उनकी बिक्री के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ती है। उत्पादित माल आसानी से बाजारों तक पहुँचाया जा सके, इसके लिए अच्छी सड़कों तथा रेलों की व्यवस्था आवश्यक है। इन माध्यमों से कारखानों तक कच्चा माल भी पहुँचाया जाता है |
प्रश्न 2. औद्योगीकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया?
उत्तर—औद्योगीकरण ने मजदूरों की आजीविका को इस तरह प्रभावित किया कि उन्हें पता भी नहीं चला और वे ग्रामीण स्वर्ग के क्षेत्र के स्थान पर शहरीय स्लम नरकीय जीवन में फँसने को मजबूर हो गए। शहरो में या जहाँ भी कारखाना लगाए गए वहाँ के विषय में ऐसा प्रचार किया गया, मानो मजदूरी को वहाँ आरामदायक जीवन “व्यतीत करने का अवसर मिलेगा। फलतः वे गाँवों को छोड़ कारखाने वालों स्थानों या शहरों को जाने लगे। लेकिन वहाँ उनके लिए सुख सपना साबित हुआ। झुग्ग-झोपड़ी में रहकर उन्हें नरकीय जीवन बिताना पड़ा।
प्रश्न 3. स्लम पद्धति की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर-स्लम पद्धति की शुरुआत औद्योगीकरण से हुई। मजदूरों को छोटे-छोटे घरों में रहना पड़ा, जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी। स्त्री हो या पुरुष-सभी को खुले में शौच जाना पड़ता था। इस कारण गंदगी बढ़ने लगी और लोग तरह तरह के रोगों का शिकार होने लगे। मजदूर अपने निवास के लिए अच्छी सुविधापूर्ण व्यवस्था’ करने में असमर्थ थे। कारण कि उन्हें इतनी कम आय होती थी, जिससे उनको दाने-दाने को मुँहताज रहना पड़ता था। आगे चलकर कुछ ट्रेड यूनियन बने, जिन्होंने उत्पादन से होने वाले की आय के उचित बँटवारे की बात उठाई। लेकिन ये यूनियन अपनी दुकानदारी चमकाने में अधिक रहते थे और मजदूरों को सुविधा दिलाने की ओर कम ध्यान देते थे।
प्रश्न 4. न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुआ? इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर— न्यूनतम मजदूरी कानून (Minimum Wages Act), 1949 में पारित किया गया। इसका उद्देश्य था कि मजदूरों की उनकी क्षमता के मुकाबले मजदूरी निश्चित हो जाय – ताकि थानेदार उनका शोषण नहीं करने पाएँ। इसके साथ ही उनके काम के घंटे भी निश्चित किए गए। न्यूनतम मजदूरी इतनी निश्चित की गई, जिससे मजदूर न केवल अपना, बल्कि अपने परिवार का भी पालन-पोषण कर सकें। इतना ही नहीं, इससे कुछ अधिक भी हो, इसका भी ख्याल रखा गया।
प्रश्न 5. ” कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण को गति प्रदान की ।” कैसे ?
उत्तर—औद्योगीकरण के आरम्भ से ही कोयला और लोहा की आवश्यकता महसूस हुई। जितनी भी मशीने बनीं या जिनके बनने की कल्पना की गई वे सब लोहे से ही बन सकती थीं। लोहा को उसका वास्तविक रूप दे सकता था कोयला । अतः इन दोनों खनिजो—कोयला और लोह ने औद्योगीकरण को गति ही नहीं, स्थायीत्व भी प्रदान किया। पूँजीपति इन दोनों खनिजों का लाभ उठाकर विश्व को अनेक सुविधापूर्ण वस्तुएँ प्रदान तो की, लेकिन इन उद्योगों से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया। आज का वैश्विक तापमान उसी का परिणाम है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. औद्योगीकरण के कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर-औद्योगीकरण सर्वप्रथम इंगलैंड में ही हुआ। इसके कुछ कारण भी थे। एक कारण तो यह था कि वहाँ स्वतंत्र व्यापार (free trade) और अहस्तक्षेप की नीति (policy of lasissez faire)। इन कारणों से ब्रिटेन में व्यापार की इतनी वृद्धि हुई कि व्यापारी धन-धान्य से भरपूर हो गए। व्यापार के विकसित होने से वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी।” लेकिन जिस ढाँचे में वे थे, उसमें वस्तुओं का उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। सूत की कमी पड़ रही थी। सूत के अभाव में बुनकरों को बेकार समय बिताना पड़ता था । इसी कमी को पूरा करने के लिए सूत का उत्पादन बढ़ाना आवश्यक था। इतिहास की दुनिया में हुए।
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटेन में अनेक नई मशीनों के आविष्कार 1769 में आर्क राइटने स्पिनिंग फ्रेम बनाया जो सूत काटने की मशीन थी। और जल शक्ति से चलती थी। 1770 में हारग्रीब्ज ने सूत काटने की स्पिनिंग जेनी (spinning jenny) नामक एक अन्य मशीन बनाई जो सोलह तकुए एक चक्के के से चलते थे। इन मशीनों के कारण सूत की कमी दूर हो गई। लेकिन शीघ्र ही 1773 में जॉन के ने फ्लाइंग शल (fling shuttle) बना डाला, जिस पर तेजी से कपड़ा बुना जाने लगा। अब फिर सूत की कमी महसूस की जाने लगी। 1779 में सेम्यूल काम्पटेन ने स्पिनिंग म्यूल (spinning mule) बना डाला, जिससे तेजी से और महीन सूत काता जा सकता था। 1779 ने कार्टराइट ने भाप से चलने वाला पावर लुम (power loam) नामक करघा बना डाला। इसी समय कपड़ा छापने की मशीन भी बन गई।
टॉमस बेल की बेलनाकार छपाई (cylindrical printing) की मशीन ने सूती वस्त्रों की रंगाई एवं छपाई में नई क्रांति ला दी। इन्हीं आविष्कारों के चलते 1820 तक ब्रिटेन सूती वस्त्र उद्योग में काफी आगे निकल गया। इस स्थित को लाने में 1769 में जेम्स वाट द्वारा बनाए गए। भाप इंजन ने काफी सहयोग दिया। वाष्प की मदद से रेल के ईंजन बनने लगे। कोयला खानों के मजदूरों के लिए 1815 में ही हैम्फ्री डेवी ने सेफ्टी लैम्प (safety lamp) का आविष्कार किया। 1815 में ही हेनरी बेसेमर ने ऐसी शक्तिशाली भट्ठी बनाई कि लोहा गलाना बहुत आसान हो गया।
प्रश्न 2. औद्योगीकरण के फलस्वरूप (परिणामस्वरूप) होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- औद्योगीकरण की सफलता से उत्पादन इतना बढ़ गया कि उन्हें बेचने के लिए बाजार की आवश्यकता थी। बाजार के साथ-साथ कच्चे माल भी आवश्यक थे। ये दोनों आवश्यकताएँ एशिया और अफ्रीका के वे देश पूर्ण कर सकते थे जहाँ यूरोपीय देशों के उपनिवेश थे। अब उपनिवेशों को बढ़ाने और उन्हें स्थिर करने की होड़-सी मच गई । ब्रिटेन ने भारत में अपने को और मजबूत किया। भारत के जिन क्षेत्रों पर वह अधिकार नहीं जमा सका उस क्षेत्र के शासकों से समझौता कर विभिन्न प्रावधानों द्वारा उन्हें अपनी मुट्ठी में ही रखा। ये राजे-रजवाड़े अंग्रेजों के अच्छे मददगार भी साबित हुए अफ्रीका को लेकर यूरोपीयन देशों में सबसे अधिक होड़ थी। उस महादेश को लेकर युद्ध भी हुए और समझौते भी । समझौतों के अनुसार इन्होंने उसका बँटवारा इस प्रकार किया मानों इनकी बपौती जमीन हो। आप यदि अफ्रीका के मानचित्र देखें तो पाएँगे कि सभी देशों की सीमाएँ पूर्णतः या लगभग सीधी-सीधी हैं।
कच्चे माल की पहुँच कारखाना तक तथा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए सड़कों और रेलों का जाल बिछा दिया गया। न केवल अपने देश में, बल्कि उपनिवेश वाले देशों में भी। रेलवे स्टेशन से समुद्र तट तथा समुद्र तट से रेलवे स्टेशन को रेलों और सड़कों से जोड़ा गया। अब बड़े-बड़े समुद्री जहाज बने, जिनकी सामान ढोने की क्षमता हमारी सोच से भी अधिक थी। वैसे यूरोपीय देश तो पहले से ही उपनिवेश स्थापना की ओर बढ़ चुके थे, लेकिन अब वे उसे फैलाने और स्थिर करने में तत्पर हो गए। इसी का परिणाम था प्रथम विश्व युद्ध, जो 1914 से 1918 तक चला। उपनिवेशवाद से आते है?
“औद्योगीकरण में उदको जन्म दिया।” कैसे है कोई देश किसी अन्य देश पर अपना उपनिवेशवादको कहते है, जिनके सैनिक शक्ति से सम्पन्न जमा कर वहाँ शासन करने लगता है। इसी को उपनिवेशवाद करते है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन द्वारा भारत पर अधिकार जमने ललेगा, फ्रांस का हिन्दी पर अधिकार जमा लेना आदि। में पूछा गया है कि औधोकरण के उपनिवेशवाद को जन्म दिया और कैसे ? इस विषय में कहना पड़ेगा कि औद्योगीकरण के उपनिवेशवाद को जन्म दिया, बल्कि उपवेशवाद ने औद्योगीकरण को जन्म दिया। कम-से-कम भारत के सन्दर्भ में तो यही रही है। भारत में अंग्रेजों में पैर पहले जमाए और इंग्लैंड में औद्योगीकरण बाद में हुआ। एशियाई देशों के साथ-साथ अफ्रीकी देशों के विषय में भी यही कहना सही है।
वास्तव में कहना चाहिए कि औद्योगीकरण की सफलता के बाद उपनिवेशों की छीना- झपटी और विस्तार आदि की घटनाएँ बढ़ने लगीं। जहाँ उपनिवेशवादी मजबूत थे, वहाँ उसने अपने को और मजबूत किया और अपने विरोधियों को भगा दिया था उन्हें कमजोर करने में लगे रहे। जिन यूरोपीय देशों के पास बड़े उपनिवेश थे, वे तो उसकी मजबूती में लगे थे और जिन देशों के पास छोटे उपनिवेश थे वे उसकी मजबूती और विस्तृतीकरण में लगे थे। जिसके पास कोई उपनिवेश नहीं था, वह उपनिवेश की वाहत में परेशान था। असल में यूरोप राष्ट्रवाद के मद में इतना अंधा हो चुका था कि जिस राष्ट्र के पास उपनिवेश नहीं था उसे हीन दृष्टि से देखा जाता था। बड़े-बड