लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. किन तीन प्रक्रियाओं के द्वारा आधुनिक शहरों की स्थापना निर्णायक रूप से हुई ? उत्तर- (i) औद्योगिक पूँजीवाद का उदय (ii) विश्व के विशाल भू-भाग पर औपनिवेशिक शासन की स्थापना तथा (iii) लोकतांत्रिकशासन की स्थापना तथा (iii) लोकतांत्रिक आदर्शों का विकास। प्रश्न 2. समाज का वर्गीकरण ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में किस भिन्नता के आधार पर किया जाता है? उत्तर- समाज का वर्गीकरण ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में निम्नलिखित भिन्नता के आधार पर किया जाता है (i) जनसंख्या का घनत्व तथा कृषि आधारित आर्थिक क्रियाओं का अनुपात । (ii) कृषि में संलग्न लोगों का ही नगरों की ओर बढ़ना एक गतिशील मुद्रा प्रधान अर्थर्व्यवस्था पर आधारित रहता है। वहाँ के लोग उद्यमी प्रवृत्ति के होते हैं। प्रश्न 3. आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा नगरीय बनावट केदो प्रमुख आधार क्या हैं? उत्तर- जनसंख्या का घनत्व तथा कृषि आधारित आर्थिक क्रियाओं का अनुपात। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक हस्तक्षेप बहुत कम होता है। (ii) आधुनिक काल में औद्योगीकरण ने नगरीय बनावट को गहन रूप से प्रभावित किया है। नगरीय क्षेत्र में प्रशासनिक हस्तक्षेप अधिक होता है। प्रश्न 4. गाँव के कृषिजन्य आर्थिक क्रियाकलापों की विशेषता दर्शाइए। उत्तर- गाँवों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृषि सम्बंधी व्यवसाय से जुड़ा है। अधिकांश वस्तुएँ कृषि उत्पाद ही होती है, जो इनकी आय का प्रमुख स्रोत होता है। इतना ही नहीं, ग्रामीण अपने उत्पाद से ही अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेते हैं। कपास उपजाकर वे अपनी वस्त्र की समस्या भी हल कर लेते हैं। अतः एक कृषि प्रधान अर्थव्यस्था मूलतः जीवन निर्वाहक अर्धव्यवस्था की अवधारणा पर आधारित होती है। प्रश्न 5. शहर किस प्रकार की क्रियाओं के केन्द्र होते हैं? उत्तर- शहर मुख्यतः आर्थिक क्रियाओं के केन्द्र होते हैं। दस्तकार और कारीगर शहरों में बसे होते हैं। प्रशासनिक व्यवस्था भी अधिकतर शहरों में ही सुदृढ़ पाई जाती है। अत्यधिक श्रम और श्रम विभाजन ने व्यावसायिक विशिष्टता को जन्म दिया। शहरों में आकर एकत्र होने वाले लोग वास्तव में गाँव के ही होते हैं, जो शहरी चमक-दमक से आकर्षित होकर शहर में पहुँच जाते हैं। औद्योगीकरण ने शहरीकरण को जन्म दिया। प्रश्न 6. नगरीय जीवन एवं आधुनिकता एक-दूसरे से अभिन्न रूप से कैसे? जुड़े हुए हैं ? उत्तर- नगरीय जीवन एवं आधुनिकता वास्तव में एक-दूसरे की अन्तर्भिव्यक्ति है। नगरों को आधुनिक व्यक्तियों का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। सघन जनसंख्या वाले नगर कुछ मनीषियों को ही अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन इन बाध्यताओं के बावजूद समूह पहचान’ के सिद्धान्त को आगे बढ़ाते हैं, जो कई कारणों सेना नगरीय जीवन का पूर्ण प्रतिनिधित्व करते हैं। और तीव्र करता है। प्रश्न 7. ”नगरों’ में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अल्पसंख्यक है।” क्यों बनी है? उत्तर- लन्दन अगर एक और और कथा दूसरा यह भी सत्य था कि ऐसे अवसर के तथा आर्थिक विशेषाधिकार प्राप्त थे । क्या जीवन जी सकते थे। चूंकि अधिकतर व्यक्ति, जो हमें रहते थे, बाधायाओं में समित थे तथा उन्हें सापेक्षिक स्वतंत्रता प्राप्त गरीबी थी। तो दूसरी और चमक दमक । इसी कारण ग्रह मान्यता बनी कि नगरों में विशेधीकार अल्पसंख्यक है। प्रश्न 8, नागरिक अधिकारों के प्रति एक नई चेतना किस प्रकार के आंदोलन या प्रयास से आई ? उत्तर- शहरों की बढ़ती आबादी को कोई नागरिक सुविधाएँ प्राप्त नहीं थी। सुविधाओं को बढ़ना या बढ़वाने के लिए नई चेतना लागी आवश्यक थी। इसके लिए अनेक आन्दोलन हुए, जिनमें चार्डिंग आन्दोलन तथा दस घंटे का आन्दोलन प्रसिद्ध है यद्यपि ये आन्दोलन कारखाना में काम करने वाले मजदूरी से सम्बद्ध थे, किन्तु इनकी सफलता से नागरिक अधिकारों के प्रति भी एक नई चेतना का विकास हुआ। प्रश्न 9 व्यावसायिक पूँजीवाद ने किस प्रकार नगरों के उदभव में अपना योगदान दिया है? उत्तर- उद्योगों में पूँजी लगाने वाले वे ही लोग थे, जो व्यापार व्यवसाय से काफी पूँजी एकत्र कर चुके थे। ये जहाँ अपना व्यवसाय करते थे, पहले वह तो गाँव ही था, बाद में कस्बा बन गया। कस्बा ही विकसित होकर नगर के रूप में बदल गए। वहाँ सीधी और सपाट सड़के बनी, आगंतुकों के आवास के लिए धर्मशालाएँ बनी। धीरे-धीरे वह नगर किसी खास वस्तु के व्यवसाय का केंद्र बन गया। अतः स्पष्ट है कि व्यावसायिक पूँजीवाद ने ही नगरी के उद्भव में अपना योगदान दिया। प्रश्न 10. शहरों के उद्भव में मध्यमवर्ग की भूमिका किस प्रकार की रही? उत्तर- शहरों के उद्भव में मध्यम वर्ग की भूमिका बहुत ही सशक्त रही। वास्तव में शहरों के उद्भव ने ही मध्यम वर्ग को शक्तिशाली बनाया। शिक्षित वर्ग के वे लोग, जिन्हें बुद्धिजीवी वर्ग भी कहा गया, विभिन्न रूपों में कार्यरत थे। कोई शिक्षक था तो कोई डॉक्टर, कोई वकील था तो कोई जज। इसी तरह इंजीनियर, क्लर्क, एकाउण्टेंट। लेकिन इनके जीवन मूल्य लगभग समान थे। ये न तो अत्यधिक धनी थे और न अत्यधिक निर्धन। इनमें कुछ तो वेतन भोगी थे तो कुछ ठेकेदार। शहरों के विकास में इनका महत्वपूर्ण हाथ था। प्रश्न 11. श्रमिक वर्ग का आगमन शहरों में किन परिस्थितियों में हुआ? उत्तर- शहरों में फैक्टरी प्रणाली की स्थापना के साथ ही श्रमिकों का वहाँ आना आरम्भ हो गया। इनमें अधिकांश भूमिहीन कृषक-मजदूर थे, जो अधिक और नगद आय की लालसा से अपने गृह गाँव से पलायन कर शहरों में आने लगे। वास्तव में गाँवों में कृषि कार्य की मजदूरी में अनाज ही मिलता था। इस कारण उनकी बहुत-सी आवश्यकताएँ अतृप्त ही रह जाती थी। लेकिन शहरों में आकारी श्रमिक बनकर नकद आय प्राप्त करने लगे। इससे इनको लगा कि इनकी सुविधाएँ बढ़ने लगी है। प्रश्न 12. शहरों ने किन नई समस्याओं को जन्म दिया? उत्तर- शहरों में श्रमिकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ते हुए अत्यधिक हो गई। सरकार लोकभावना अभी पनपी नहीं थी। इस कारण शहरों में अनेक समस्याओं का जन्म हुआ। एक तो बेरोजगारी में वृद्धि होने लगी। दूसरे नव आगन्तुकों के लिए आवास की समस्या। शौचालयों या स्नानघरों की भी कमी थी। कहीं-कहीं तो पेयजल की समस्या भी थी। स्वास्थ्य सम्बंधी भी कोई अच्छी व्यवस्था नहीं थी। श्रमिकों ने अपने हितों की रक्षा के लिए श्रमिक संघ बनाए। सरकार भी देती और संसद ने कुछ फैक्टरी नियम बनाए। श्रमिकों का वेतन बढ़ा तथा काम के घंटे भी सीमित हुए।दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. शहरों के विकास की पृष्ठभूमि एवं उसकी प्रक्रिया पर प्रकाश डालें। उत्तर- प्राचीन काल में शहरों का विकास एका-ऐक नहीं हो जाता था, जैसा कि आज होता है। पहले गाँव ही धीरे-धीरे विकसित होकर शहर बनते थे। इस क्रम में पहले उसे बाजार और बाजार से कस्बों में बदलता होता था। आज तो कहीं विरान में कोई बड़ा कारखाना लगा नहीं कि शीघ्र ही वह स्थान शहर का रूप ले लेता है। जमशेदपुर, बोकारो, सिन्दरी, बरौनी आदि इनके ताजा उदाहरण हैं। शहरों में भव्य बहुमंजिले भवन होते हैं तो झुग्गी-झोपड़ियों की भी कमी नहीं होती। आज के शहर कंकरीट के जंगल के रूप में फैल रहे हैं। शहरों में व्यस्त उद्यमियों की अधिकता होती है। शहर नये राजमार्गों से जोड़े जाते हैं। वहाँ कहीं से कहीं तक जाने वाली सड़कें मिल जाती हैं। अब शहर रेलमार्ग तथा हवाई मार्ग से भी जुड़ गए हैं। इतना तो सही है कि शहरों का आरम्भ पहले धर्म स्थान से शुरू होकर वस्तुओं की खरीद-बिक्री से होते हुए कारखानों तक पहुँच गए। यहाँ शिक्षण संस्थानों के एकत्रीकरण से भी शहरों का विकास होता है। शहरों के साथ अच्छाइयाँ हैं तो बुराइयाँ भी हैं। यहाँ आवास की समस्या है। शौचालयों की कमी है। धनी वर्ग है तो गरीबों की भी कमी नहीं है। प्रश्न 2. ग्रामीण तथा नगरीय जीवन के बीच की भिन्नता को स्पष्ट करें। उत्तर- ग्रामीण तथा नगरीय जीवन के बीच काफी भिन्नता है। गाँवों में जहाँ शांति का माहौल रहता है वहीं नगरों में भीड़-भाड़, हल्ला-गुल्ला, चिल्लपों मचा रहता है। गाँवों के लोग जो काम करते हैं उसे स्थिर मिजाज से करते हैं, लेकिन नगर में सब काम हड़बड़ी में होते हैं। गाँवों में एक-दूसरे के प्रति अपनापन का भाव होता है, जबकि नगरों में पड़ोसी- पड़ोसी को भी नहीं जानता। यदि जानता भी है तो एक-दूसरे के खुशी-गम में सम्मिलित होने का उन्हें समय ही नहीं रहता। गाँवों में एक-दूसरे की खुशी और गम में सम्मिलित होना कर्तव्य माना जाता है। गाँवों में 10-15 किलोमीटर पैदल चलकर गन्तव्य तक पहुँचना कोई भारी काम नहीं माना जाता जबकि नगरों में थेड़ी दूरी के लिए भी सवारी की आवश्यकता महसूस की जाती है। गाँव में आज भी दूसरे का बनाया लोग नहीं खाते जबकि नगरों में लोग अध्यापक, प्राध्यापक, डॉक्टर, वकील, जज, विभिन्न कार्यालयों के बाबू और कर्मचारी आदि सभी मध्यम वर्ग में ही आते थे। इन्हें बुद्धिजीवी समझा जाता था। अर्थात् ये अपनी वृद्धि की कमाई खाते थे। उद्योगों में व्यवस्था विभाग हो या दूकानों के कर्मचारी सभी मध्यम वर्ग में ही आते थे। शहरीकरण में इनकी भी भूमिका रही है। श्रमिक वर्ग- पूँजीपति, उद्योगपति हो या मध्यमवर्ग के लोग सबके बोझ को सम्भालने वाले श्रमिक ही थे। श्रमिक वास्तव में गाँवों के निवासी थे, लेकिन जहाँ-जहाँ उद्योग स्थापित होते गए वहाँ-वहाँ ये श्रमिक बिन बुलाए ही पहुँचने लगे। गाँवों से शहरों इन्हें अधिक और अच्छी आय की आशा थी। लेकिन आय तो थी, लेकिन इन्हें दिन भर खटना पड़ता था। बाद में जब इन्होंने अपने ट्रेड यूनियन बनाए तब इनके काम के घंटे तय हो गए। प्रश्न 5. एक औपनिवेशिक शहर के रूप में बम्बई शहर के विकास की समीक्षा कीजिए। उत्तर- जिस प्रकार यूरोप में शहरों का विकास तेजी से हुआ उसके विपरीत भारतीय शहर धीरे-धीरे विकसित हुए। उनमें पहला वाणिज्यिक शहर बम्बई था। उन्नीसवीं सदी के अंत में बम्बई का विकास तेजी से होने लगा। वास्तव में यह शहर टापुओं का शहर था। उन सब को मिलाना पड़ा। इतना जहमत इस लिए उठाना पड़ा क्योंकि यह एक बन्दरगाह वाला शहर भी था। कारखाने-पर-कारखाने बनते जा रहे थे। टापुओं को भरने से इतनी जगह निकली की वह एक विशाल शहर बन गया। बम्बई प्रांत की राजधानी तो थी ही, वाणिज्यिक राजधानी के रूप में जानी जाने लगी। बम्बई का नया नाम मुंबई है। बम्बई के प्रमुख बन्दरगाह होने के नाते यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया । यहाँ से कपास और अफीम का निर्यात होता था। इस कारण केवल व्यापारी और महाजन बल्कि कारीगर एवं दुकानदार भी बम्बई में बस गए। कपड़ा के मिलों के खुलने पर अधिक संख्या मे श्रमिक यहाँ पहुँचने लगे। तारीफ यह कि जो यहाँ आता था, उसे अवश्य ही काम मिल जाता था। पहली कपड़ा मिला 1854 में खुली, वहीं 1921 के आते-आते कपड़ा मिलों की संख्या 85 हो गई। अब कुल मिलाकर उनमें 1,44,000 श्रमिक काम कर रहे हैं। लन्दन की तरह बम्बई भी घनी आबादी वाला शहर बन गया। 1840 में लन्दन का क्षेत्रफल प्रति व्यक्ति 155 वर्ग गज था, जबकि बम्बई का क्षेत्रफल प्रति व्यक्ति मात्र 9.5 गज था। 1872 में लन्दन में प्रति मकान में औसतन 8 व्यक्ति रहते थे वहीं बम्बई में 20 व्यक्ति रहते थे। आरम्भ में गोरों और कालों की आबादी अलग-अलग थी। यह नस्ली विभाजन अन्य प्रेसीडेंसी शहरों में भी थी, बल्कि कलकत्ता में तो और भी अधिक विभेद था।